Saturday 21 July 2012

अबला कौन ?

अबला कौन ?

बचपन में एक बार मुझे याद है की हमारे पड़ोसी के पोल्ट्री फार्म में एक बिल्ली घुस गयी थी , उस बिल्ली ने रात भर में दो मुर्गियां चट कर दी और एक मुर्गी अधमरी कर दी ! सब लोगों के कहने के अनुसार मेरे बाल मन ने मान लिया था की बिल्ली मुर्गी से ज्यादा ताकतवर होती है इसलिए उसने तीन मुर्गियां मार दी ! ....

उस घटना को कई साल बीत गए उस दिन मै एक गाँव के किनारे छोटे से मंदिर पर बैठा था ! कुछ लिख रहा था या शायद कोई चित्र बना रहा था ! कुछ दूर पर बकरियां चर रहीं थी वहीँ थोड़ी दूर पर कुछ मुर्गियां भी कूड़ा फैला फैला कर चुग रही थी मेरे पास के पेड़ों पर चिड़ियाँ चूं चूं  की आवाज की साथ दैनिक कार्यों में व्यस्त थीं  ! मैं भी ठंडी ठंडी हवा का आनंद लेते हुए अपने कार्य में व्यस्त था !
तभी अचानक पास के पेड़ों पर चिड़ियाँ जोर जोर से बेसुरी आवाज में चिल्लाने लगीं मैं भी चोंक गया की इतना मधुर वातावरण अचानक कर्कश कैसे हो गया ! तभी मुर्गियों ने चिल्लाना शुरू कर दिया मैंने भी अपना काम छोड़ कर उस तरफ देखा तो नजारा समझते देर नहीं लगी ! कहीं से एक बिल्ली ने उन मुर्गियों पर आक्रमण कर दिया था भोजन के लिए ! मैं भी उधर देखने लगा पर वहां नजारा मेरी आशा के विपरीत था जिस मुर्गी पर बिल्ली ने हमला किया था वह अपने आप को बिल्ली के वार से बचाकर बिल्ली के ऊपर ही पिल पड़ी थी ! उस मुर्गी ने अपने पंजों और चोच से बिल्ली को घायल करना शुरू कर दिया तब तक उस मुर्गी के ग्रुप के दो तीन मुर्गे एवं मुर्गियां आ गए उन्होंने भी बिल्ली पर हमला करना शुरू कर दिया ! उस बिल्ली के लिए उस जगह से भागना भी मुश्किल पद गया ! उन मुर्गों और मुर्गियों ने उसे बहुत दूर तक भगाया ! उस समय मेरी हँसी  नहीं रुक रही थी मैं बहुत देर तक हँसता  रहा ! तब तक इस हमले की सूचना किसी ने मुर्गी की बूढी मालकिन को दे दी ! वो भागते हुए वहां पहुंची ! और मुझे देहाती भाषा में गाली देते हुए बोली कि "ऐ दारियर तेल्लाये बिलय्या भगाए भी नाय मिली " अब मेरी हँसी और बढ़ गयी और मैंने कहा की मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि मैं किसे बचाओ ? इन खतरनाक मुर्गियों को या उस बेचारी बिल्ली को  ? हा हा हा


इसके कुछ देर बाद जब मैंने बचपन की घटना और इस घटना के बारे में गहराई से सोचा तो जो नतीजा निकला वह चोकाने वाला था ! पहली घटना में जो मुर्गियां बिल्ली के पंजों से स्वर्गवासी हुई थी उनकी परवरिश दडबों में हुई थी उन्हें खाने के लिए तो दिया जाता था पर वह दडबों में अपने पंखों को भी पूरी तरह नहीं फैला सकती थी ! नतीजा दब्बू स्वभाव, और कमजोर प्रतिरक्छा तंत्र! यक़ीनन जब बिल्ली वहां पर पहुंची होगी तब वह अपने मालिक के भरोसे होगी कि मालिक आये और बिल्ली को भगाए पर उनका मालिक नहीं आया और बिल्ली ने उन्हें उपरवाले मालिक के पास भेज दिया!
वहीँ दूसरी घटना में जो मुर्गियां थीं वह कुछ हद तक स्वतंत्र थीं कुछ  दूर तक भाग भी सकती थी भरपेट खाना भी खा सकती थी और उन्हें यह विस्वास था की यदि वह अपने मालिक को गला फाड़ कर भी बुलाएंगी तो भी वह नहीं आ पायेगा ! इसलिए चूंकि वह अपनी रक्छा  में समर्थ थीं और उन्हें यह आशा भी नहीं थी की कोई उन्हें बचाने आयेगा इसलिए उन्होंने बिल्ली का बहादुरी से सामना किया और नतीजा उनकी आशा के अनुरूप हुआ !

यह ऊपर के उदाहरण मैंने किसी खास सन्देश को देने के लिए दिया हैं ----


अभी एक गोवाहाटी का एक प्रकरण बहुत चर्चा में है कुछ शराबी लड़कों ने एक लड़की के कपडे फाड़ दिए और उसे बेइज्जत किया पूरी मानवता शर्मसार हुई पर दोष पुरुषों को दिया गया कि इस पुरुषवादी समाज की वजह से उस लड़की की इज्जत गयी !


तस्वीर का एक  पहलू-----

एक लड़का कहीं से मारपीट में पिटकर अपने घर आता है ! अपने घर पर अपने चोट के निशान दिखाता है ! उसके पिता जी और घर के बड़े जवान पुरुष उसकी मजाक बनाते हैं की तू पिटकर अपने घर आया हमारी इज्जत मिटटी में मिला दी , वह लड़का सोचता रहता है और घर से बाहर निकल जाता है फिर अपने दोस्त और बड़े भाइयों को इकठ्ठा करके उन  लड़कों को जिन्होंने उसको मारा था  घेर कर पीटता है और फिर घर पर आता है तब उसके बड़े उसकी पीठ थप थपाते है की मेरा बहादुर बच्चा  आ गया !

तस्वीर का दूसरा  पहलू--------


वहीँ पर एक लड़की जब अपने घर पहुँचती है कि एक लड़के ने उसको छेड़ा है तो घर के पुरुष सदस्य उस लड़के को मारने के लिए जाते हैं उस लड़की को घर पर छोड़ कर, लड़के को पीटने के बाद उस लड़की का कुछ दिनों या कुछ महीनो तक घर से निकलना बंद कर दिया जाता है ! इस डर से कि  वह पिटा हुआ लड़का लड़की के साथ कुछ बुरा करेगा ! इसमें होता क्या है कि पिटने के बाद लड़के का डर तो दूर हो जाता है और वह लड़की जो अपनी पढाई छोड़कर घर में बैठी है वो दडबे वाली मुर्गी की तरह पराश्रित हो जाती है !

अब तस्वीर के दोनों  पहलू-----


पहली घटना में जब लड़का अपने घर पहुँचता है तब घर के लोग उस लड़के के स्वाभिमान को ललकारते हैं कि तुझे खुद इस समाज से लड़ना है और लड़के को ज्ञान आ जाता है फिर वह अपने अपमान का बदला खुद लेता है वहीँ लड़की को शुरू से यही बताया जाता की तुम हमेशा पुरुष पर आश्रित रहोगी चाहे वह भाई के रूप में हो, पिता के रूप में हो या पति के रूप में हो ! क्यों हम अपनी लड़कियों को यह नहीं सिखाते कि तू खुद जा और अपने अपमान का बदला ले अगर हमारा सहयोग चाहिए तो हम सहयोग देने को तैयार है ? इसकी जगह पर हम उसे यही शिक्चा देते है की तू अबला है तू खुद कुछ नहीं कर पायेगी तुझे पुरुष नाम के प्राणी की आवश्यकता पड़ेगी ही   ! लड़का जब थोडा बड़ा होता है तो घर वाले उसकी सेहत को लेकर फिक्रमंद हो जाते हैं की लड़का बहुत कमजोर है इसे दूध, दही, घी, मक्खन खिलाओ , लड़के के बड़े भाई और पिता जी उसे व्यायाम के लिए प्रेरित करते हैं ! वहीँ लड़की को हमेशा से कहा जाता है की कम खाओ, वर्ना मोटी हो जाओगी, उससे ये क्यों नहीं कहते की बेटा पेल के खाओ और जम के व्यायाम करो ? जब उस लड़की को दडबे वाली मुर्गी की तरह घर में ही बंद रखोगे तो ऐसे गुवाहाटी जैसी घटना होगी ही ! अगर उस गुवाहाटी वाली लड़की की परवरिश भी लड़कों जैसी हुई होती तो इतने अपमान के बाद वो भी अपनी बहनों और सहेलियों के साथ डंडे लेकर उन हरामी लड़कों को दूंढ -दूंढ  कर उनके हाथ पैर तोडती !
एक बार अगर वह उन शराबी लड़कों और तमाशबीनो के हाथ पैर तोड़ देती तो कम से कम एक महीने तक उस गाँव तो क्या उस जिले में ऐसी घटना नहीं होती ! और एक महीने के बाद उससे सीख लेकर कोई दूसरी लड़की यह कारनामा कर देती तो वह इलाका हमेशा के लिए महिलाओं के लिए सुरक्छित हो जाता ! वहीँ जो रिपोर्टर उस लड़की की आबरू लुटने का वीडिओ बना रहे थे इसके बाद वह रिपोर्टर उन लड़कों की टूटी हुई टांगो और फ्रेक्चर हड्डियो का वीडिओ चैनल पर दिखा रहे होते ! और T . V . स्क्रीन पर होते वो पिटे हुए लड़के बता रहे होते की उन लड़कियों ने कितनी बुरी तरह से उन लोगों को मारा !

वहीँ इस घटना पर तमाम महिला संगठन और हमारे "भारतीय नारी ब्लॉग" जैसे लोग हम पुरुषों और लड़कों को ही दोष देते है ! ये महिला संगठन क्यों लड़किओं को ये नहीं सिखाते की बेटा आत्म निर्भर बनो, कसरत करो मजबूत बनो ? तुम्हे इस बेदर्द और जालिम समाज से खुद ही लड़ना है . तमाम महिलाये जो पुरुषो को गालियां देती है उनसे मेरा बस इतना ही कहना है की देवियों! हम पुरुष भी कोई दूसरे ग्रह से आये हुए प्राणी नहीं है हम भी आपके ही बेटा , भाई और पति है ! इसलिए लड़कों को गालियां न देकर अपनी लड़कियों को हर तरह से अपने पैरों पर खड़ा होना सिखाओ जैसे आप अपने लड़कों की सेहत का  ध्यान रखती हैं वैसे ही लड़कियों की सेहत का भी ध्यान रखो ! मानसिक, शारीरिक रूप से उन्हें मजबूत बनाओ जिससे वह किसी दूसरे पर आश्रित न रहें और अपनी सुरक्छा खुद कर सकें !

इस समाज में लड़कियों के साथ दोहरा व्यवहार किया जाता है एक तरफ नारा देतें हैं की लड़का लड़की एक समान, वहीँ दूसरी तरफ उनको आरक्चन और "LADIES FIRST " जैसे SLOGAN सुनने को मिलते हैं ! इन स्लोगनो से उन लड़कियों को यही सीख मिलती है की वो शारीरिक रूप से लड़कों से कमजोर हैं ! और उनकी मानसिकता वही बन जाती है ! जबकि वास्तविकता यह है की कुछ हद तक लड़कियां लड़कों से शारीरिक रूप से मजबूत होती हैं !
बस जरूरत है कि उन लड़कियों को दडबो से बाहर निकलकर अपनी सुरक्छा खुद करने दो फिर देखना लड़किया क्या क्या करती है ! तब समाज में छेड़छाड़, दहेज़ हत्या, तेजाब फेकना -जैसे महिलाओं पर होने वाले अत्याचार सुनने को नहीं मिलेंगे !


अँधेरी रातों में सुनसान राहों पर जब कोई मसीहा निकलता है तो उसे "शहंशाह" ही क्यों कहते है क्या कोई "बेगम" रात को मसीहा बनकर नहीं निकल सकती ?


काफी समय पहले नाना पाटेकर की एक मूवी देखी थी "क्रांतिवीर"- जिसमे कलम वाली बाई नाना पाटेकर से कहती है कि तेरे सामने किसी ओरत पर अत्याचार हो रहा है और तू हँस रहा है तब नाना पाटेकर कलम वाली बाई से कहता है की अगर आज में उस ओरत को बचा लूँगा तो कल मेरे न रहने पर उसे कौन बचाएगा अगर वह अबला बनी रहेगी तो उसके साथ ऐसा ही होगा चल उठ अगर तू दुर्गा नहीं है, भवानी नहीं है, तो तुझ पर अत्याचार करने वाला भी कोई महाबली दैत्य नहीं है चल उठ तेरे हाथ में जो भी पड़े उठा के मार इन साले हरामियों को और इतना सुनने के बाद उस ओरत में वो शक्ति आ गयी की उसने उन गुंडों की जम के पिटाई की अंत में उन गुंडों को वहां भागना पड़ा !


एक बार मै मध्य प्रदेश के इंदोर शहर के गाँव में एक लोकल  बस में सफ़र कर रहा था आगे जाकर एक शराबी अधेड़ आदमी बस में घुसा और कुछ समय बाद उसने बस में महिलाओं से छेड़ छाड़ शुरू कर दी ! एक महिला तो उससे तंग आकर अपने स्टॉप से पहले ही उतर गयी ! वहीँ उसने जब दूसरी महिलाओं से अभद्रता की तब एक महिला ने हिम्मत करके उसके एक थप्पड़ जड़ दिया फिर उसके बाद पहले से जली भुनी बैठी महिलाओं से उसपर जो हाथ साफ किया चप्पल, लात, घूंसे एक को कुछ नहीं मिला तो अपने HANDBAG से ही उसे धुनना शुरू कर दिया और मेरी हँसते हँसते हालत ख़राब थी ! पीछे से मै भी उन महिलाओं का उत्साह वर्धन कर रहा था और मारो और मारो ! आखिर वो आदमी चलती बस से उतर कर भाग खड़ा हुआ ! एक ओरत फिर भी चिल्ला रही थी की साले ओरत को इतना कमजोर समझा है जानता नहीं है कि  ओरत का एक रूप लक्छमी बाई भी है ! तब मैंने उस ओरत से कहा कि माते ! आप लोगों को रूप बदलते इतना समय क्यों लगता है ?
मेरे इतना कहते ही वह महिला मुस्करा पड़ी ! हमारे समाज भी ऐसा ही है बस जरूरत है कि पहला हाथ उठाया जाये !
खैर अंत में मै सभी माताओं बहनों से यही कहूँगा की ऐसी घटनाओ के बाद पुरुषों और लडको को गालियाँ न देकर स्वं को देखें की हमारे अन्दर कमी कहाँ पर थी  और सभी लड़कियों के खाने से लेकर व्यायाम तक का ध्यान स्वं माताओ के द्वारा रखा जाये ! और सबसे पहले इस "अबला" शब्द को सभी महिलाएं अपनी शब्दकोष से हटा दे ! बार बार महिलाओं को अबला कहने ने उनकी मानसिकता भी अबला (बलहीन) जैसी ही हो जाती है !  
  
मेरे लिए वह दिन सबसे ख़ुशी का होगा जिस दिन मै पेपर में पढूंगा कि किसी लड़की ने छेड़छाड़ करने वाले लड़के के हाथ पैर तोड़े और वह लड़का अस्पताल में एवं लड़की हवालात में है !


भगवान् से मै प्रार्थना करता हूँ कि काश वह दिन मेरे बुड्ढा होने से पहले आ जाये !  




नोट :- भावनाओं के प्रवाह में  मैं  अगर कुछ अपशब्द बोल गया हूँ तो उसके लिए छमा प्रार्थी हूँ ! तथा यदि मेरे इस पोस्ट से किसी की भावनाओं को ठेस पहुंची और वह ग्लानी से भर गया है तो यह मेरे लिए सौभाग्य की बात है !

धन्यवाद !

13 comments:

  1. "वह भी श्रृंगार बनाती थी, पर कमर कटारी कसी हुई।"

    परवरिश का ही फ़ेर है। अच्छा चिंतन है।

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    1. ललित जी आपका आभार जो आपने ब्लॉग पढ़ा और अपनी सकारात्मक राय दी !
      हमारे समाज में यही हो रहा है ! गलती कहीं होती है और दोष किसी को दिया जाता है !
      बस जरुरत है बीमारी की जड़ पकड़ने की रोग तो अपने आप दूर हो जायेगा !
      धन्यवाद !

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  2. सहमत हूँ आपके विचारों से लेकिन समाज में काफी बदलाव की आवश्यकता है, जिसकी शुरुआत एक परिवार, घर और व्यक्ति से होनी चाहिए...

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    1. संध्या जी नमस्कार !
      आपने अपनी राय दी आपका आभार !
      हम सब को सांप का सर कुचलना है सांप की पूँछ पकड़ने से कुछ नहीं होगा !क्यों हम अपनी लड़कियों के साथ छेड़छाड़ जैसा कुछ होने पर लड़कियों नहीं डांटते की तुने उसका सर क्यों नहीं फोड़ा ?
      जब तक हम लड़कियों को अपनी सुरक्छा अपने आप करना नहीं सिखायेंगे ये गुवाहाटी जैसे प्रकरण होते रहेंगे ! काश ये लड़कियां जितना प्रयास और समय अपना मेक अप करने में लगाती हैं इससे आधा भी अपनी सेहत और आत्म विश्वास बढ़ाने में लगायें तो ऐसे प्रकरण दोबारा नहीं होंगे ऐसा मेरा अपना निजी मत है !
      धन्यवाद !

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  3. मेरे लिए वह दिन सबसे ख़ुशी का होगा जिस दिन मै पेपर में पढूंगा कि किसी लड़की ने छेड़छाड़ करने वाले लड़के के हाथ पैर तोड़े और वह लड़का अस्पताल में एवं लड़की हवालात में है !
    ऐसे दिन का मुझे भी इंतजार रहेगा..

    वैसे बहुत बदल चुका है समय आजकल ..
    अपनी स्थिति पर लडकियों ने घर में बहस शुरू कर दिया है ..

    आनेवाले दिनों में चौक चौराहों में भी हिम्‍मत रखेंगी !!

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  4. Replies
    1. Thanks Mam' for reading my blog..

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    2. i shared your link too ( to this post )

      please remove word verification - in dashboard - settings - comments. it makes it difficult for readers to comment, and eventually they stop commenting.

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    3. Oh....
      thanks Ma'm its my pleasure.
      I am Not Habitual to write Blog,
      I Will try to remove word verification in Dashboard Setting..

      With Regards_
      Shravan

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  5. keep it up we have hopes from youngsters like you
    hope you remain as you are in your thinking process

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    1. Thanks Rachna Mam
      for reading this blog and Appreciating.
      thanks a lot.

      With Regards
      Shravan

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    2. :)padk ke bahaut accha laga, main ladki hun aur mujhe to kuch bhi hinsaatmak, ya outrageous nahi laga aapke ideas mein, now i just wish ki main khud aise ban jaun, izzat aur aazaadi se jeena ka mazaa hi kuch aur hota hai :)

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    3. Thanks Tripti :)
      For Commenting and appreciating this post,
      Ya.. i can understand your feeling, we are youngsters and first we need a change in us then we can do change in our Atmosphere.

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