Wednesday 25 July 2012

"हिंसा" -समाधान या समस्या ?


कुछ लोगों ने ई-मेल के द्वारा मुझे मेरी पिछली पोस्ट "अबला कौन ?" पर विरोध जताया कि आप इस पोस्ट के द्वारा हिंसा को बढ़ावा दे रहे हो ! क्या हिंसा हर समस्या का समाधान है ? क्या इस समस्या (नारी उत्पीडन ) का शांति पूर्वक कोई समाधान नहीं है ?

तो ठीक है अभी हम क्या कर रहे है ? अभी हम अहिंसा ही तो अपना रहे हैं ?
कोई भी नारी उत्पीडन का वाकया होता है तो हम अहिंसा का रास्ता ही अपनाते हैं ! पीडिता लड़की या महिला रोते रोते अपने घर आती है ! उसके घर वाले भी उसके रोने में उसके साथ हो जाते हैं ! फिर घर वाले और लड़की दोनों मिल कर रोते हैं ! रोना धोना ख़त्म करने के बाद घर में मीटिंग बैठती है कि आगे क्या किया जाये ? पोलिस में रिपोर्ट लिखाई जाये या नहीं ? रिपोर्ट लिखाने और न लिखाने के फायदे और नुकसान का मैथ लगाया जाता है ? 80% लोग (प्रतिशत कम हो रहा है ) रिपोर्ट नहीं लिखाते हैं यह भी एक अहिंसा है इसके बाद अगर रिपोर्ट लिखा भी दी तो तमाम बिचोलिये और खुद पुलिस आकर समझौता कराने की पैरवी करते हैं ! इसके बाद भी अगर पीड़ित परिवार नहीं मानता है तो उसे डराया धमकाया जाता है ! कैसे भी पीड़ित परिवार नहीं मानता है तो उसे केस लड़ने के लिए गवाह नहीं मिलते ! कभी कभी तो लड़की का मर्डर हो जाता है और केस बन जाता है सुसाइड का !

क्या है ये ? सब पीड़ित परिवार की अहिंसा ही तो है !

जैन धर्म के अनुसार हिंसा चार प्रकार की होती है -

* आरंभी- जीवन को बनाए रखने के लिए थोड़ी बहुत हिंसा तो होगी ही। चलने-फिरने, नहाने-धोने, उठने-बैठने, खाना बनाने जैसे कामों में जो हिंसा होती है वह आरंभी हिंसा है। 

* उद्योगी- नौकरी, खेती, उद्योग, व्यापार आदि जीवकोपार्जन के साधन अपनाने में जो हिंसा होती है वह उद्योगी हिंसा है।

* प्रतिरोधी हिंसा- अपने सम्मान, संपत्ति और देश की रक्षा करने में, आतंक और आक्रमण के विरुद्ध उठ खड़े होने में जो हिंसा होती है वह प्रतिरोधी हिंसा है। 



* संकल्पी हिंसायुद्ध थोपने, सांप्रदायिक विद्वेष फैलाने, शिकार करने, धार्मिक अनुष्ठानों में बलि चढ़ाने, दूसरों को गुलाम बनाने, गैर की जमीन हड़पने, गर्भपात करने/कराने, सत्ता और बाजार पर काबिज होने आदि में जो हिंसा होती है वह संकल्पी हिंसा है


इस प्रकार उपर्युक्त में से मैं प्रथम तीन हिंसा करने को हिंसा नहीं सम्मान पूर्वक जीने के लिए जरूरी समझता हूँ !
और मैंने अपनी पिछली पोस्ट "अबला कौन" में उन्ही हिंसा को करने के लिए कहा है !-.
इतिहास इसका गवाह है की जब तक किसी को हिंसा से न डराया जाये तब तक सामने वाला हमसे प्रेम भी बिना डर के नहीं करता है !
जब रामचंद्र जी लंका पर चढाई के लिए समुन्द्र से प्रीत पूर्वक रास्ता मांग रहे थे -तब समुन्द्र भी उनकी नहीं सुन रहा था जब उन्होंने परेशान  होकर समुन्द्र को सुखाने के लिए अपने धनुष को उठाया - तब उसने झट से उनको पार जाने का रास्ता दे दिया !-

विनय न मानत जलधि जड़ गए तीन दिन बीत '
बोले राम सकोप तब भय बिन होत न प्रीत "



इस प्रकार मेरे अनुसार अपने आत्म सम्मान और आत्म रक्छा के लिए की गयी हिंसा, हिसा नही होती !

अगर अब भी किसी को कोई शंका हो तो वह मुझे ई मेल (shravansom444@gmail.com) पर अपनी शंकाओं से अवगत करा सकता है -

धन्यवाद !


Saturday 21 July 2012

अबला कौन ?

अबला कौन ?

बचपन में एक बार मुझे याद है की हमारे पड़ोसी के पोल्ट्री फार्म में एक बिल्ली घुस गयी थी , उस बिल्ली ने रात भर में दो मुर्गियां चट कर दी और एक मुर्गी अधमरी कर दी ! सब लोगों के कहने के अनुसार मेरे बाल मन ने मान लिया था की बिल्ली मुर्गी से ज्यादा ताकतवर होती है इसलिए उसने तीन मुर्गियां मार दी ! ....

उस घटना को कई साल बीत गए उस दिन मै एक गाँव के किनारे छोटे से मंदिर पर बैठा था ! कुछ लिख रहा था या शायद कोई चित्र बना रहा था ! कुछ दूर पर बकरियां चर रहीं थी वहीँ थोड़ी दूर पर कुछ मुर्गियां भी कूड़ा फैला फैला कर चुग रही थी मेरे पास के पेड़ों पर चिड़ियाँ चूं चूं  की आवाज की साथ दैनिक कार्यों में व्यस्त थीं  ! मैं भी ठंडी ठंडी हवा का आनंद लेते हुए अपने कार्य में व्यस्त था !
तभी अचानक पास के पेड़ों पर चिड़ियाँ जोर जोर से बेसुरी आवाज में चिल्लाने लगीं मैं भी चोंक गया की इतना मधुर वातावरण अचानक कर्कश कैसे हो गया ! तभी मुर्गियों ने चिल्लाना शुरू कर दिया मैंने भी अपना काम छोड़ कर उस तरफ देखा तो नजारा समझते देर नहीं लगी ! कहीं से एक बिल्ली ने उन मुर्गियों पर आक्रमण कर दिया था भोजन के लिए ! मैं भी उधर देखने लगा पर वहां नजारा मेरी आशा के विपरीत था जिस मुर्गी पर बिल्ली ने हमला किया था वह अपने आप को बिल्ली के वार से बचाकर बिल्ली के ऊपर ही पिल पड़ी थी ! उस मुर्गी ने अपने पंजों और चोच से बिल्ली को घायल करना शुरू कर दिया तब तक उस मुर्गी के ग्रुप के दो तीन मुर्गे एवं मुर्गियां आ गए उन्होंने भी बिल्ली पर हमला करना शुरू कर दिया ! उस बिल्ली के लिए उस जगह से भागना भी मुश्किल पद गया ! उन मुर्गों और मुर्गियों ने उसे बहुत दूर तक भगाया ! उस समय मेरी हँसी  नहीं रुक रही थी मैं बहुत देर तक हँसता  रहा ! तब तक इस हमले की सूचना किसी ने मुर्गी की बूढी मालकिन को दे दी ! वो भागते हुए वहां पहुंची ! और मुझे देहाती भाषा में गाली देते हुए बोली कि "ऐ दारियर तेल्लाये बिलय्या भगाए भी नाय मिली " अब मेरी हँसी और बढ़ गयी और मैंने कहा की मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि मैं किसे बचाओ ? इन खतरनाक मुर्गियों को या उस बेचारी बिल्ली को  ? हा हा हा


इसके कुछ देर बाद जब मैंने बचपन की घटना और इस घटना के बारे में गहराई से सोचा तो जो नतीजा निकला वह चोकाने वाला था ! पहली घटना में जो मुर्गियां बिल्ली के पंजों से स्वर्गवासी हुई थी उनकी परवरिश दडबों में हुई थी उन्हें खाने के लिए तो दिया जाता था पर वह दडबों में अपने पंखों को भी पूरी तरह नहीं फैला सकती थी ! नतीजा दब्बू स्वभाव, और कमजोर प्रतिरक्छा तंत्र! यक़ीनन जब बिल्ली वहां पर पहुंची होगी तब वह अपने मालिक के भरोसे होगी कि मालिक आये और बिल्ली को भगाए पर उनका मालिक नहीं आया और बिल्ली ने उन्हें उपरवाले मालिक के पास भेज दिया!
वहीँ दूसरी घटना में जो मुर्गियां थीं वह कुछ हद तक स्वतंत्र थीं कुछ  दूर तक भाग भी सकती थी भरपेट खाना भी खा सकती थी और उन्हें यह विस्वास था की यदि वह अपने मालिक को गला फाड़ कर भी बुलाएंगी तो भी वह नहीं आ पायेगा ! इसलिए चूंकि वह अपनी रक्छा  में समर्थ थीं और उन्हें यह आशा भी नहीं थी की कोई उन्हें बचाने आयेगा इसलिए उन्होंने बिल्ली का बहादुरी से सामना किया और नतीजा उनकी आशा के अनुरूप हुआ !

यह ऊपर के उदाहरण मैंने किसी खास सन्देश को देने के लिए दिया हैं ----


अभी एक गोवाहाटी का एक प्रकरण बहुत चर्चा में है कुछ शराबी लड़कों ने एक लड़की के कपडे फाड़ दिए और उसे बेइज्जत किया पूरी मानवता शर्मसार हुई पर दोष पुरुषों को दिया गया कि इस पुरुषवादी समाज की वजह से उस लड़की की इज्जत गयी !


तस्वीर का एक  पहलू-----

एक लड़का कहीं से मारपीट में पिटकर अपने घर आता है ! अपने घर पर अपने चोट के निशान दिखाता है ! उसके पिता जी और घर के बड़े जवान पुरुष उसकी मजाक बनाते हैं की तू पिटकर अपने घर आया हमारी इज्जत मिटटी में मिला दी , वह लड़का सोचता रहता है और घर से बाहर निकल जाता है फिर अपने दोस्त और बड़े भाइयों को इकठ्ठा करके उन  लड़कों को जिन्होंने उसको मारा था  घेर कर पीटता है और फिर घर पर आता है तब उसके बड़े उसकी पीठ थप थपाते है की मेरा बहादुर बच्चा  आ गया !

तस्वीर का दूसरा  पहलू--------


वहीँ पर एक लड़की जब अपने घर पहुँचती है कि एक लड़के ने उसको छेड़ा है तो घर के पुरुष सदस्य उस लड़के को मारने के लिए जाते हैं उस लड़की को घर पर छोड़ कर, लड़के को पीटने के बाद उस लड़की का कुछ दिनों या कुछ महीनो तक घर से निकलना बंद कर दिया जाता है ! इस डर से कि  वह पिटा हुआ लड़का लड़की के साथ कुछ बुरा करेगा ! इसमें होता क्या है कि पिटने के बाद लड़के का डर तो दूर हो जाता है और वह लड़की जो अपनी पढाई छोड़कर घर में बैठी है वो दडबे वाली मुर्गी की तरह पराश्रित हो जाती है !

अब तस्वीर के दोनों  पहलू-----


पहली घटना में जब लड़का अपने घर पहुँचता है तब घर के लोग उस लड़के के स्वाभिमान को ललकारते हैं कि तुझे खुद इस समाज से लड़ना है और लड़के को ज्ञान आ जाता है फिर वह अपने अपमान का बदला खुद लेता है वहीँ लड़की को शुरू से यही बताया जाता की तुम हमेशा पुरुष पर आश्रित रहोगी चाहे वह भाई के रूप में हो, पिता के रूप में हो या पति के रूप में हो ! क्यों हम अपनी लड़कियों को यह नहीं सिखाते कि तू खुद जा और अपने अपमान का बदला ले अगर हमारा सहयोग चाहिए तो हम सहयोग देने को तैयार है ? इसकी जगह पर हम उसे यही शिक्चा देते है की तू अबला है तू खुद कुछ नहीं कर पायेगी तुझे पुरुष नाम के प्राणी की आवश्यकता पड़ेगी ही   ! लड़का जब थोडा बड़ा होता है तो घर वाले उसकी सेहत को लेकर फिक्रमंद हो जाते हैं की लड़का बहुत कमजोर है इसे दूध, दही, घी, मक्खन खिलाओ , लड़के के बड़े भाई और पिता जी उसे व्यायाम के लिए प्रेरित करते हैं ! वहीँ लड़की को हमेशा से कहा जाता है की कम खाओ, वर्ना मोटी हो जाओगी, उससे ये क्यों नहीं कहते की बेटा पेल के खाओ और जम के व्यायाम करो ? जब उस लड़की को दडबे वाली मुर्गी की तरह घर में ही बंद रखोगे तो ऐसे गुवाहाटी जैसी घटना होगी ही ! अगर उस गुवाहाटी वाली लड़की की परवरिश भी लड़कों जैसी हुई होती तो इतने अपमान के बाद वो भी अपनी बहनों और सहेलियों के साथ डंडे लेकर उन हरामी लड़कों को दूंढ -दूंढ  कर उनके हाथ पैर तोडती !
एक बार अगर वह उन शराबी लड़कों और तमाशबीनो के हाथ पैर तोड़ देती तो कम से कम एक महीने तक उस गाँव तो क्या उस जिले में ऐसी घटना नहीं होती ! और एक महीने के बाद उससे सीख लेकर कोई दूसरी लड़की यह कारनामा कर देती तो वह इलाका हमेशा के लिए महिलाओं के लिए सुरक्छित हो जाता ! वहीँ जो रिपोर्टर उस लड़की की आबरू लुटने का वीडिओ बना रहे थे इसके बाद वह रिपोर्टर उन लड़कों की टूटी हुई टांगो और फ्रेक्चर हड्डियो का वीडिओ चैनल पर दिखा रहे होते ! और T . V . स्क्रीन पर होते वो पिटे हुए लड़के बता रहे होते की उन लड़कियों ने कितनी बुरी तरह से उन लोगों को मारा !

वहीँ इस घटना पर तमाम महिला संगठन और हमारे "भारतीय नारी ब्लॉग" जैसे लोग हम पुरुषों और लड़कों को ही दोष देते है ! ये महिला संगठन क्यों लड़किओं को ये नहीं सिखाते की बेटा आत्म निर्भर बनो, कसरत करो मजबूत बनो ? तुम्हे इस बेदर्द और जालिम समाज से खुद ही लड़ना है . तमाम महिलाये जो पुरुषो को गालियां देती है उनसे मेरा बस इतना ही कहना है की देवियों! हम पुरुष भी कोई दूसरे ग्रह से आये हुए प्राणी नहीं है हम भी आपके ही बेटा , भाई और पति है ! इसलिए लड़कों को गालियां न देकर अपनी लड़कियों को हर तरह से अपने पैरों पर खड़ा होना सिखाओ जैसे आप अपने लड़कों की सेहत का  ध्यान रखती हैं वैसे ही लड़कियों की सेहत का भी ध्यान रखो ! मानसिक, शारीरिक रूप से उन्हें मजबूत बनाओ जिससे वह किसी दूसरे पर आश्रित न रहें और अपनी सुरक्छा खुद कर सकें !

इस समाज में लड़कियों के साथ दोहरा व्यवहार किया जाता है एक तरफ नारा देतें हैं की लड़का लड़की एक समान, वहीँ दूसरी तरफ उनको आरक्चन और "LADIES FIRST " जैसे SLOGAN सुनने को मिलते हैं ! इन स्लोगनो से उन लड़कियों को यही सीख मिलती है की वो शारीरिक रूप से लड़कों से कमजोर हैं ! और उनकी मानसिकता वही बन जाती है ! जबकि वास्तविकता यह है की कुछ हद तक लड़कियां लड़कों से शारीरिक रूप से मजबूत होती हैं !
बस जरूरत है कि उन लड़कियों को दडबो से बाहर निकलकर अपनी सुरक्छा खुद करने दो फिर देखना लड़किया क्या क्या करती है ! तब समाज में छेड़छाड़, दहेज़ हत्या, तेजाब फेकना -जैसे महिलाओं पर होने वाले अत्याचार सुनने को नहीं मिलेंगे !


अँधेरी रातों में सुनसान राहों पर जब कोई मसीहा निकलता है तो उसे "शहंशाह" ही क्यों कहते है क्या कोई "बेगम" रात को मसीहा बनकर नहीं निकल सकती ?


काफी समय पहले नाना पाटेकर की एक मूवी देखी थी "क्रांतिवीर"- जिसमे कलम वाली बाई नाना पाटेकर से कहती है कि तेरे सामने किसी ओरत पर अत्याचार हो रहा है और तू हँस रहा है तब नाना पाटेकर कलम वाली बाई से कहता है की अगर आज में उस ओरत को बचा लूँगा तो कल मेरे न रहने पर उसे कौन बचाएगा अगर वह अबला बनी रहेगी तो उसके साथ ऐसा ही होगा चल उठ अगर तू दुर्गा नहीं है, भवानी नहीं है, तो तुझ पर अत्याचार करने वाला भी कोई महाबली दैत्य नहीं है चल उठ तेरे हाथ में जो भी पड़े उठा के मार इन साले हरामियों को और इतना सुनने के बाद उस ओरत में वो शक्ति आ गयी की उसने उन गुंडों की जम के पिटाई की अंत में उन गुंडों को वहां भागना पड़ा !


एक बार मै मध्य प्रदेश के इंदोर शहर के गाँव में एक लोकल  बस में सफ़र कर रहा था आगे जाकर एक शराबी अधेड़ आदमी बस में घुसा और कुछ समय बाद उसने बस में महिलाओं से छेड़ छाड़ शुरू कर दी ! एक महिला तो उससे तंग आकर अपने स्टॉप से पहले ही उतर गयी ! वहीँ उसने जब दूसरी महिलाओं से अभद्रता की तब एक महिला ने हिम्मत करके उसके एक थप्पड़ जड़ दिया फिर उसके बाद पहले से जली भुनी बैठी महिलाओं से उसपर जो हाथ साफ किया चप्पल, लात, घूंसे एक को कुछ नहीं मिला तो अपने HANDBAG से ही उसे धुनना शुरू कर दिया और मेरी हँसते हँसते हालत ख़राब थी ! पीछे से मै भी उन महिलाओं का उत्साह वर्धन कर रहा था और मारो और मारो ! आखिर वो आदमी चलती बस से उतर कर भाग खड़ा हुआ ! एक ओरत फिर भी चिल्ला रही थी की साले ओरत को इतना कमजोर समझा है जानता नहीं है कि  ओरत का एक रूप लक्छमी बाई भी है ! तब मैंने उस ओरत से कहा कि माते ! आप लोगों को रूप बदलते इतना समय क्यों लगता है ?
मेरे इतना कहते ही वह महिला मुस्करा पड़ी ! हमारे समाज भी ऐसा ही है बस जरूरत है कि पहला हाथ उठाया जाये !
खैर अंत में मै सभी माताओं बहनों से यही कहूँगा की ऐसी घटनाओ के बाद पुरुषों और लडको को गालियाँ न देकर स्वं को देखें की हमारे अन्दर कमी कहाँ पर थी  और सभी लड़कियों के खाने से लेकर व्यायाम तक का ध्यान स्वं माताओ के द्वारा रखा जाये ! और सबसे पहले इस "अबला" शब्द को सभी महिलाएं अपनी शब्दकोष से हटा दे ! बार बार महिलाओं को अबला कहने ने उनकी मानसिकता भी अबला (बलहीन) जैसी ही हो जाती है !  
  
मेरे लिए वह दिन सबसे ख़ुशी का होगा जिस दिन मै पेपर में पढूंगा कि किसी लड़की ने छेड़छाड़ करने वाले लड़के के हाथ पैर तोड़े और वह लड़का अस्पताल में एवं लड़की हवालात में है !


भगवान् से मै प्रार्थना करता हूँ कि काश वह दिन मेरे बुड्ढा होने से पहले आ जाये !  




नोट :- भावनाओं के प्रवाह में  मैं  अगर कुछ अपशब्द बोल गया हूँ तो उसके लिए छमा प्रार्थी हूँ ! तथा यदि मेरे इस पोस्ट से किसी की भावनाओं को ठेस पहुंची और वह ग्लानी से भर गया है तो यह मेरे लिए सौभाग्य की बात है !

धन्यवाद !

Monday 16 July 2012

आस्था से खिलवाड़ "

प्रिय ब्लॉगर मित्रो नमस्कार !

कहीं पर कुछ भी 
हम लोग मंदिरों का महत्व समझते है ! यह वह स्थान होता है जहाँ हम लोग अकेले या समूह में भगवान् या अपने इष्ट देव का पूजन करते हैं ! एक आदर्श मंदिर की विशेषता होती है की वहां एक से अधिक लोगों का पूजा करना  चाहिये एवं उसका एक निश्चित आकार होना चाहिए !

"हिन्दुओं के उपासनास्थल को मन्दिर कहते हैं। यह अराधना और पूजा-अर्चना के लिए निश्चित की हुई जगह या देवस्थान है। यानी जिस जगह किसी आराध्य देव के प्रति ध्यान या चिंतन किया जाए या वहां मूर्ति इत्यादि रखकर पूजा-अर्चना की जाए उसे मंदिर कहते हैं।"


कहीं पर कुछ भी 
हम लोग देखते हैं की कोई भी व्यक्ति कहीं पर भी एक पत्थर या मूर्ती रख देता है और उस पर रोली या कोई लाल  रंग लगा देता है और हम लोग उसे अपना भगवान मान कर पूजा करना शुरू कर देते है ! चाहे हमारे जाने के बाद वहां पर आवारा जानवर घूमें या असामाजिक तत्व बैठकर अपनी लीला दिखाएँ !
कहीं पर कुछ भी 
मुझे ध्यान है की एक बार किसी व्यक्ति ने एक छोटे से चबूतरे पर एक सीमेंट की मूर्ती लगा दी थी ! कुछ दिनों के बाद किसी कारण से रात में वह मूर्ती खंडित हो  गयी एवं इसी वजह से वहां पर साप्रदायिक दंगे भड़क गए! परिणाम स्वरूप चार व्यक्ति अस्पताल में थे एवं एक व्यक्ति भगवान को प्यारा हो गया !
इस प्रकरण पर मेरे अनुसार अगर वह मूर्ती किसी आवारा जानवर द्वारा तोड़ी गयी हो तब ? तब दोष किसका है ?
निश्चित तौर पर हम लोगों का दोष है जो आस्था में डूबकर बिना सुरकछा और पवित्रता का ध्यान रखे कहीं पर भी भगवान को बैठा देते है !
महाराज एक फोटू खिचवाय लियो 
एक बार अज्ञातवास के दौरान मैं भी एक ऐसे ही चबूतरे पर बैठा था और दूसरा व्यक्ति जो मेरे साथ ही बैठा था वो शायद वहां का कर्ता धर्ता था ! जब मैंने उससे वहां की सुरक्छा के वाबत पुछा तो वह मजाक में बोला की जो भगवान दूसरों की सुरक्छा करता है वो अपनी सुरकचा नहीं करेगा क्या ?
उसके इतना बोलते ही मुझे सोमनाथ मंदिर लूट प्रकरण याद आ गया जब विदेशी लुटेरे सोमनाथ मंदिर लूट रहे  थे तब वहां पर मौजूद पुजारी जो संख्या में लुटेरों से तीन गुने थे वहां पर सोमनाथ भगवान् की मूर्ती के आगे इस आशा से दंडवत मुद्रा में लेटे थे कि भगवान अभी उठेंगे और लूटेरों का नाश करेंगे पर वहां ऐसा कुछ नहीं हुआ और लूटेरों ने अमूल्य संपत्ति तो लूटी ही साथ में उन पुजारियों का सर भी धड से अलग कर गए !
मेरा कहना है कि जब मंदिर में कोई कुत्ता घुस जाता है तब हम लोग बड़ी बहादुरी से उसे भगा देते है  फिर उन लूटेरों को क्यों छोड़ दिया ?

खैर विषय पर आते हुए अंत में मेरा यही कहना है कि जब भी आप या हम कहीं पर आस्था के प्रतीकों की स्थापना करवाएं तब तब उन प्रतीकों की स्थापना से पहले उस जगह की पवित्रता और सुरक्छा का ध्यान पहले रखें !

धन्यवाद !

Thursday 12 July 2012

माँ छिन्नमस्तिके मंदिर (झारखण्ड )


कृपया कमजोर दिल वाले व्यक्ति  प्रथम तीन फोटो ही देंखे ! 
Picture taken by my Camera :Sony DSC-S5000

आइये आपको ले चलते है झारखण्ड प्रान्त के रामगढ जिले के माँ छिन्नमस्तिके मंदिर में, यह मंदिर दामोदर और भैरवी नदी के संगम पर बना हुआ है ! यह दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा शक्तिपीठ है !
यहाँ मांगी मन्नत हमेशा पूरी होती है।.............



माँ  छिन्नमस्तिके के दर्शन के लिए लगी लाइन
अगर आपको कोई मन्नत मांगनी हो तो कलावा में एक छोटा पत्थर बांध कर यहाँ लटका सकते है 


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Caution !
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मंदिर में बलि प्रथा भी प्रचलित है 
इन बकरों ने क्या पाप किया है ?
प्रसाद की तैयारी करते भक्त गण 
दीन दुनिया से बेखबर अपनी धुन में मस्त एक मछुआरा 


प्रिय ब्लॉगर साथियों मेरे पास पोस्ट के सम्बन्ध में लिखने का समय नहीं था इसलिए तब तक फोटो देखिये पोस्ट भी शीघ्र ही !

धन्यवाद !

Saturday 7 July 2012

बहुरूपिया साधू -----


अपनी इस जीवन में मै अपने अज्ञात वास के दौरान कई साधू , महात्माओं, अघोरिओं से मिला ! हालाँकि मैं उस समय ऐसे वेश भूषा में था कि वो साधू या स्वयं मेरे घर वाले मुझे देखते तो नहीं पहचान पाते ! मेरे इस वेश से मुझे उन्हें समझने में अत्यंत आसानी हुई ! एक तो वो मुझे भी अपनी तरह नाकारा समझते थे और मैं भी खुल कर उनसे बातें कर सकता था !
मेरे दिमाग में एक प्रश्न हमेशा से था- कि साधुओं की भूमिका हमारे समाज में कैसा हो ?
क्या आज के समाज में जैसे साधू ,संत, महात्मा, अघोरी दिख रहे हैं, साधू ऐसे ही होने चाहिए ? मेरे विचार से आप सबकी राय होगी नहीं ..
अब में आपको कुछ साधुओं का उदाहरण देता हूँ .---

प्रथम उदाहरण --
वाराणसी के एक निर्जन घाट पर एक हट्टे कट्टे बाबा चिंतन ( सोच -विचार ) की मुद्रा में बैठे हुए हैं कोई विशेष मेकअप नहीं था उनका बस गेरुआ रंग के कपडे पहन रखे थे ! परिचय हुआ तो बताया गया कि कोलकाता के रहने वाले हैं, किसी अच्छी कम्पनी में सुपरवाईजर थे , ग्रेजूएट है ( बी।.ए ) , आठ साल हुई घर नहीं गए, एक मंदिर में रात्रि विश्राम करते है, दिन भर गंगा जी के घाट पर या किसी मंदिर के प्रांगड़ में पड़कर सोते रहते है! कुछ विदेशी लोग घाट पर आते है तो उन्हें उलटी सीधी कहानियां सुनाकर पैसे ऐंठ लेते हैं ! चिलम पीते है ! इष्ट देव के बारे में पुछा की बाबा किसकी पूजा करते हो  तो बोले गाड एक ही है मैं सबको मानता हूँ ! भोजन के बारे में पूछने पर बताया की कहीं भी कर लेते है , धार्मिक नगरी है कहीं न कहीं मंदिर में भंडारा चलता रहता है।.
द्वितीय उदाहरण ---
मध्य प्रदेश के इंदौर शहर के पास एक ऐतिहासिक जगह है "मांडव " वहां पर पहाड़ी के नीचे गुफा जैसी जगह में नीलकंठ नाम का शिव जी का एक प्राचीन मंदिर है , मंदिर के चबूतरे पर तीन कृशकाय साधू बाबा बैठे हुए "भोजन" के बारे में चर्चा कर रहे हैं !
कि यहाँ तो कोई आदमी ये भी नहीं पूछता कि बाबा भोजन, पानी कर लो ! सब अधार्मिक लोग हैं , जहाँ साधू संतो कि इज्ज़त नहीं होती वहां जाना भी बेकार है,
लेखक पहले तो उनकी चर्चा सुनता रहा फिर घुस पड़ा उनके बीच -- बाबा जी पायं लागन, "जीते रहहो बालक"  प्रत्युत्तर मिला ! पहले इधर उधर की बातें करने के बाद परिचय  पर आये ----
बताया गया की फैजाबाद , अयोध्या के पास के रहने वाले हैं ! यहाँ नर्मदा जी की परिक्रमा करने आये हैं ! अब तक ज्यादातर शिवलिंग की यात्रा कर चुके हैं ! शिव जी के परम भक्त हैं ! भिकछा पर गुजारा करते हैं ! ट्रेन में  फ्री सफ़र उनका जन्म सिद्ध अधिकार है !

अगला प्रश्न्न :-

बाबा जी सन्यास कब लिया और क्यों ?
अब तीनो कुछ देर के लिए साइलेंट हो गए ---
घर ग्रहस्ती में मन नहीं लगा, पिता जी से लड़कर बचपन में घर से भाग गए थे -एक साधू बाबा ने अपना चेला बना लिया, एक ने कारण नहीं बताया- कहा ईश्वरीय प्रेरणा थी बस ,,
जब तीनों उठकर चलने लगे तो एक चाय की दुकान पर सभी को नाश्ता पानी करवाया, सीताराम कह् कर विदा ली !

तृतीय उदाहरण --- 
उत्तर प्रदेश के बरेली शहर के निकट रामगंगा नदी के किनारे चोबारी नाम का धार्मिक स्थान  है , वहीँ नदी किनारे पर कुष्ट आश्रम , कई छोटे बड़े मंदिर, छायादार पेड़ स्थित है ! कई साधुओं के झुण्ड विराजमान थे ! में सभी झुंडो के पास से निकला पर मुझे कहीं भी "प्रभु" चर्चा नहीं सुनाई दी ! इसके बजाये मठों, मंदिरों की पुरोहिताई कब्जाने के प्रयास, चिलम, गांजे की बातें ...और कुछ ऐसी बातें जो मैं यहाँ बता नहीं सकता हूँ !
एक महाराज अकेले अकेले ही चिलम सुटयाने में लगे हुए थे  ! मैं भी उनके पास जाकर बैठ गया राम राम हुई !
तमाम तरह की परिचर्चाओं के बाद पता चला कि वह यहाँ के (उ..प्र।.) के रहने वाले नहीं हैं ! बिहार और बंगाल के बोर्डर पर उनका गाँव है ! बहुत छोटे थे किसी साधू ने उन्हें अपना चेला बना लिया था ! घर में बहुत गरीबी थी ! उनके 6 भाई बहन थे , पिता जी ने खुद ही साधू के साथ भेज दिया ! वह साधू उनसे अपने सारे काम करवाता था , कपडे धोना , खाना बनाना , मंदिर की साफ सफाई करना , रात में साधू के पैर दबाना आदि ! एक दिन साधू बाबा स्वर्ग सिधार गए तो मंदिर मे दूसरा साधू  आ गया और उसने इनको मार कर भगा दिया !
अब क्या करते है --?
जवाब था --बस बही दिनचर्या कि तीर्थ यात्रा करना, भिक्चा मांगना, दो साथी और हैं कहीं गए हुए हैं वो भी आते होंगे ..
मैंने भी इनसे ये जानकारी लेने के लिए 20 रु खर्च किये थे तब जाकर साधू बाबा थोड़े इमोशनल हुए थे !

 चतुर्थ उदाहरण -- 
यह आपको समझाने की आवश्यकता नहीं है कि स्वामी नित्यानंद , निर्मल बाबा , और इनके जैसे जाने कितने बाबा समाज में क्या कर रहे हैं ! समाज से गंदगी साफ़ करने की जगह और फैला रहे है।. इन थोड़े से लोगों की वजह से पूरा धर्म बदनाम हो रहा है।. इसके जिम्मेदार हम और आप सब लोग हैं जो कि इनको बढावा दे रहे हैं ...


निष्कर्ष :-
साधू संत या तपस्वी एक पदवी है जो लोगों के द्वारा प्रदान की जाती है ! हम लोग ये पदवी किसी भी लाल गेरुआ वस्त्र पहनने वाले को प्रदान कर देते है।. चाहे वह घर से, जिम्मेदारी से भागा हुआ हो , चाहे वह अपराधी हो, निकम्मा नाकारा पुरुष हो, कोई भिखारी हो,  कोई व्यक्ति हो ! पुलिस भी आस्था धर्म की आड़ में छुपे इन अपराधियों को नहीं पकड़ पाती क्योंकि ये हम लोगों की ढाल बनाकर कानून के आगे खड़े हो जाते हैं।.

मेरा आदर्श हर वह व्यक्ति साधू , संत या महात्मा है जो समाज के लिए कुछ करता है चाहे वह कुरीतियाँ मिटाना हो या समाज की अन्य समस्याएं दूर करना हो

"पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य --- भारत के एक युगदृष्टा मनीषी थे जिन्होने अखिल भारतीय गायत्री परिवार की स्थापना की। उनने अपना जीवन समाज की भलाई तथा सांस्कृतिक व चारित्रिक उत्थान के लिये समर्पित कर दिया। उन्होने आधुनिक व प्राचीन विज्ञान व धर्म का समन्वय करके आध्यात्मिक नवचेतना को जगाने का कार्य किया ताकि वर्तमान समय की चुनौतियों का सामना किया जा सके। उनका व्यक्तित्व एक साधु पुरुष, आध्यात्म विज्ञानी, योगी, दार्शनिक, मनोवैज्ञानिक, लेखक, सुधारक, मनीषी व दृष्टा का समन्वित रूप था।"


"महर्षि स्वामी दयानन्द सरस्वती-- एक महान चिन्तक, समाज-सुधारक व देशभक्त थे।महर्षि दयानन्द ने अनेक स्थानों की यात्रा की। उन्होंने हरिद्वार में कुंभ के अवसर पर पाखण्ड खण्डिनी पताका फहराई। उन्होंने अनेक शास्त्रार्थ किए। महर्षि दयानन्द ने चैत्र शुक्ल प्रतिपदा संवत् १९३२ को गिरगांव मुम्बई में आर्यसमाज की स्थापना की।महर्षि दयानन्द ने तत्कालीन समाज में व्याप्त सामाजिक कुरीतियों तथा अन्धविश्वासों और रूढियों-बुराइयों को दूर करने के लिए, निर्भय होकर उन पर आक्रमण किया!  वे प्रचंड तार्किक थे। उन्होंने ईसाई और मुस्लिम धर्मग्रन्थों का भली-भाति अध्ययन-मन्थन किया था। अतएव अकेले ही उन्होंने तीन-तीन मोर्चों पर संघर्ष आरंभ कर दिया। दो मोर्चे तो ईसाइयत और इस्लाम के थे किंतु तीसरा मोर्चा सनातनधर्मी हिंदुओं का था, जिनसे जूझने में स्वामी जी को अनेक अपमान, कुत्सा, कलंक और कष्ट झेलने पड़े। उनके प्रचण्ड शत्रु ईसाई और मुसलमान नहीं, बल्कि सनातनी हिन्दू निकले। और कहते है अंत में इन्हीं हिन्दुओं के षडयन्त्र से उनका प्राणान्त भी हुआ।"


"स्वामी विवेकानन्द ---वेदान्त के विख्यात और प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु थे। उनका वास्तविक नाम नरेन्द्र नाथ दत्त था। उन्होंनेअमेरिका स्थित शिकागो में सन् १८९३ में आयोजित विश्व धर्म महासभा में भारत की ओर से सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व किया था। भारत का वेदान्त अमेरिका और यूरोप के हर एक देश में स्वामी विवेकानन्द की वक्तृता के कारण ही पहुँचा। उन्होंने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की थी जो आज भी अपना काम कर रहा है।"


ऐसे  होते हैं संत -----


मेरा निजी विचार है की जब कोई व्यक्ति गृहस्थ होता है तो वह केवल परिवार के बारे में ही सोच पाता है, परन्तु जब कोई सन्यासी होता तो उसे समस्त संसार अपना परिवार समझना चाहिए और उसके सुधार के लिए प्रयास करना चाहिए ! कोई भी व्यक्ति नाकारा की तरह बैठकर या गेरुआ कपडे पहन ने से ही साधू नहीं हो जाता है !
अगली बार जब आप किसी साधू या संत से मिलें तो उससे ये अवश्य पूछना कि महाराज आपने समाज के लिए क्या किया ?


(हालाँकि में इस विवादस्पद और गंभीर विषय पर लिखना नहीं चाहता था पर न जाने क्यों मेरा मन नहीं माना ) ! 


धन्यवाद !


Thursday 5 July 2012

(4) लंगूरों से लड़ाई-----


लंगूरों से लड़ाई----- 
अगले दिन सुबह जल्दी ही आंख खुल गयी ! कुछ मन में उत्साह भी था नयी अपरिचित पहाड़ी तीर्थ यात्रा का ! पर मन थोडा खिन्न भी था क्योंकि  साथ में दो भुत भी चिपक गए थे ! सुबह उठकर सार्वजनिक शोचालय में जाकर निवृत्त हुआ ! आशुतोष को सामान रक्छा का दायित्व देकर गंगा जी के स्नान के लिए चल दिया ! हरिद्वार में प्रशासन ने गंगा जी के तेज प्रवाह से बचाने के लिए जंजीरे लगवा रखी है पर यहाँ ऐसा कुछ नहीं था ! अगर पैर से जमीन छूटी तो पता नहीं गंगा मैया कौन से शहर में जाकर निकालेंगी  ! चलो तब तक दोनों साधू लोग भी दैनिक क्रिया से निवृत्त होकर घाट पर आ गए थे ! पानी बहुत ठंडा था दो तीन डुबकी  लगाने के बाद पूरा शरीर ठण्ड से ऐंठ गया ! मैंने मन में कहा की बेटा निकल लो ज्यादा धार्मिक न बनो वर्ना भगवान को प्यारे हो जाओगे !
 दोनों साधू एक दुसरे का हाँथ पकड़कर नहा रहे थे तब तक बाबा आशुतोष भी पधार चुके थे !सारे  लोगो ने नहा धो कर केश विन्यास किया और मैंने भी अपना हुलिया बदला राम नाम की शर्ट पहनी केसरिया अंगोछा सर पर बांधा नीचे लोवेर डाली साधू बाबा से लेकर चन्दन माथे पर पोता और बन गया "टेम्पररी साधू " . भजन -पुजन , पेट पुजन के बाद चल दिए अनजान डगर पर , मुझे रास्ता की जानकारी नहीं थी , पर साधू बाबा कह रहे थे की वो इस जगह पर तीन बार आ चुके हैं .. ! मोसम अच्छा था आसमान में हलके बादल थे, थोडा कोहरा भी था, हरे पेड़ों से घिरे पहाड़ भी बहुत सुंदर लग रहे थे, आगे साधू बाबा चल रहे थे हम दोनों लोग पीछे थे लक्च्मन झुला पार करने के बाद पहले भगवन शंकर का भूतनाथ मंदिर पड़ा उसके बाद पहाड़ी रास्ता शुरू हो गया, साधू बाबा पीछे रह गए और हम लोग आगे निकल आये .! रस्ते में ऐसे पेड़ , लताएँ दिखी की हम लोगों ने इससे पहले नहीं देखि थी ! आशुतोष ने रास्ते के लिए चने लेकर रख लिए थे ! हम लोग रस्ते के मजे लेते हुए चल रहे थे .. प्राकृतिक सोंदर्य हमेशा सम्मोहक होता है ..रस्ते में एक दो चाय की दुकान भी पड़ गयी थी !
 हम लोग रास्ते के लिए आवश्यक कैलोरी और डीहाईड्राशन से बचने के लिए पानी भी पीते जा रहे थे ! लगभग 5 किलोमीटर चलने के बाद बीहड़ जंगल शुरू हो गया था हम लोगो ने पीछे पलटकर देखा तो साधू महाराज नहीं दिखे ! तब हम लोग एक पेड़ के नीचे बैठकर उनका इंतजार करने लगे ! आशुतोष ने भी चने निकाल  लिए थे हम दोनों चने खाने में व्यस्त थे तब तक न जाने कहाँ से एक लंगूर की फॅमिली टपक पड़ी ! हम दोनों ने एक दूसरे की शकल देखी ! आशुतोष ने झट से अपने सारे  चने दूर फ़ेंक दिए , वो लंगूर उन्हें खाने में व्यस्त हो गए तब तक मुझे मौका मिल गया था मैंने अपने सारे चनो  से अपना मुंह भर लिया ( आखिर हम भी तो लंगूरों के ही वंशज हैं )  और जो हाथ में बचे उन्हें दूर फ़ेंक दिया. जब लंगूरों के चने ख़त्म हो गए तो वो मेरी तरफ देखे और में उनकी तरफ!....
मेने कहा अब क्या करोगे बेटा चने तो ख़त्म हो गए में अभी भी अपना मुह चला रहा था ! 
आशुतोष ने मेरी तरफ ऐसे देखा जैसे कह रहा हो काश में भी चने अपने मुह में भर  लेता ...
फिर उन लंगूरों ने वो किया जिसके लिए में बिलकुल भी तैयार नहीं था ....
उनमे से एक नर  लंगूर जो सबसे मोटा था और गिरोह का लीडर भी उसने मेरा थैला छीनने के लिए झपट्टा मारा ! हम लोगो ने एक बार तो उन्हें भगा दिया ... वो अभी भी मुझे घुड़की दे रहे थे ..
फिर मैंने लंगूरों से कहा की दादा क्यों हमारे धैर्य की परीक्चा ले रहे हो ? 
एक तो सारे चने खा गए और एक दो कपडा है वो छीन रहे हो 
अगर तुम यहाँ के राजा हो तो हम भी ब्रूस ली के चेले हैं, एक बार जो हमारे दिमाग की हट गयी तो इन्हीं पहाड़ों पर भगा भगा कर मारेंगे और कोई बचाने भी नहीं आयेगा.... 
मेरे इतना कहते ही पता नहीं क्यों वो नर लंगूर इतनी तेज मेरी तरफ दोडा ..(शायद मेरी बात उसकी समझ में आ गयी  थी )....
रुक तेरी तो ...... मैंने साइड से पत्थर उठाकर दे मारा , वो पड़ गया उसकी पीठ पर , "भद्द " की आवाज आई ..
सारे लंगूर ची ची घुर्र घुर्र  करके मेरी तरफ झपटे ,,, मैंने भी जो पत्थर हाथ में आया जल्दी जल्दी उनकी तरफ फेंकना शुरू किया ,  आशुतोष की डर के मारे  हालत ख़राब थी  ......
मुझे किसी भी तरह उनको अपने से दूर रखना  था , पास आकर वो मेरी जो दुर्गति करते ये में अच्छी तरह जानता था ! 
आशुतोष मुझे समझा रहा था की मत मर यार , सारे लंगूर इकठ्ठा  होकर हम दोनों को उल्टा करके इन्ही पहाड़ियों से लटकायेंगे ......
तब तक दोनों साधू महाराज आते दिखाई दे गए पहले तो दोनों हमारा और लंगूरों का युद्ध देखकर रुक गए फिर धीरे से बोले बेटा अब पत्थर नहीं मारना ! अब भई बड़े बुजर्ग थे और ऊपर से साधू बाबा मैंने भी बात मान ली ! वे मुझसे बोले तुम पीछे हटो ...
फिर उन्होंने अपनी झोली से प्रसाद निकाला और लंगूरों  को देना शुरू किया अब लंगूर भी शांत थे और मैं भी ! फिर हम  लोग आगे बढ चले लेकिन जिस लंगूर को मैंने पत्थर मारा था वो मुझे अभी भी घूरकर देख रहा था  जैसे कह रहा हो कि बेटा अभी तो बच गया अगली बार देख लेंगे ......
मैंने भी उसे घूरकर देखा और चल दिए अगले पड़ाव पर .....    


आगे........    


साधूओं की जादूगरी, नीलकंठ महादेव दर्शन , जंगल में रात्रि विश्राम 
   

(3) और महाराज प्रकट हो गए -----

और महाराज प्रकट हो गए -----

मैं इसी सोच विचार में बैठा था कि ये दोनों गए कहाँ . कोई बात नहीं में क्यों सोच रहा हूँ उनके बारे में ऐसा मन में कहा और झपकी लेने लगा . ...अचानक जब ट्रेन ने ब्रेक लगाये तो नींद खुली अभी थोडा अँधेरा ही था , मेरे सर के ऊपर एक गेरुआ रंग का कपडा लटकने लगा . अब ये क्या नयी आफत है . मैंने मन में कहा और खड़े होकर ऊपर वाली सीट पर देखा तो दोनों महाराज ऊपर पदमासन की मुद्रा में विराजमान थे ! पहले तो उन्हें अँधेरे में ऊपर देखकर डर गया फिर थोडा हिम्मत करके बोला अरे महाराज आप ऊपर हैं मैंने सोचा की कहाँ चले गए ?.. उन दोनो ने कोई जवाब नहीं दिया ! मैं फिर से अपनी सीट पर बैठ गया और सोचने लगा की ये दोनों ऊपर कैसे पहुँच गए ऊपर तो कोई और बैठा था  ?
खैर नींद लेना भी जरुरी था मैंने कहाँ कुछ भी हो जाये अब नहीं उठना है .
ससुरा आशुतोष घुर्र्राते हुए सो रहा था ! मैंने सोने का बहाना बनाते हुए उसके कंधे पर अपना सर मार दिया अब वो तो जाग कर सीधा हो गया और मुझे   घुर्र्रातो से निजात मिल गयी ! 
फिर आराम से आँख बंद की और कब आंख लगी पता नहीं चला ..
सुबह 9:30 या 10:00 बजे तक हम लोग हरिद्वार पहुँच गए थे अच्छा यही जुलाई का महिना था ! बारिश हो चुकी थी ! स्टेशन पर उतरकर जोर से अंगड़ाई ली और बैग संभाल कर चल दिए गंगा जी के तीरे , घाट पर ज्यादा शोर शराबा नहीं था ! एकांत घाट पर नहाने का मजा ही कुछ और होता है ..फिर से छपाक --छप कूद पड़े थे कपडे उतार कर ...पर जितनी तेज़ी से अन्दर कूदे उससे दुगनी स्पीड से वापस आ गए ! पानी इतना ठंडा था की दो मिनट में ही कुल्फी जमा दी ! में ठण्ड से ठिठुर रहा था ! बाहर  आकर जल्दी से कपडे बदले !
MAN V/S WILD में देखता था की अधिक ठण्ड से आप HYPOTHERMIA के शिकार हो सकते हैं इसलिए जल्दी से बाहर  आकर चाय की दुकान पर चाय पी ! थोडा ठण्ड से राहत मिली और साथ में उत्तरांचल का NEWS PAPER भी पढने लगा ! तब  तक स्वामी 1008 आशुतोष जी भी नहा धोकर पधार चुके थे ! मैने कहा आओ महाराज आपके ही दर्शन की इच्छा थी !  उन्होंने भी चाय का आर्डर दे दिया , में फिर से दैनिक जागरण में घुस गया और जब सारी मुख्य समाचार पड़ लिए तो पेपर आशुतोष ने माँगा --
मैंने जैसे ही पेपर चेहरे से हटाया की अचानक चौंक गया -- सामने वही रात वाले जुड़वां साधू विराजमान थे , मैंने मन में सोचा की ये दोनों इन्सान है या भूत ?
मुझे इतनी तेज गुस्सा आया की पहले तो दोनों से राम राम की,
फिर उनसे बोला महाराज एक बात पूंछु ?
आपको कोई गुप्त बिद्या आती है ?
वे बोले मतलब ?
मैंने कहा कि मतलब पानी पर चलना,  गायब होना  ???
वे बोले नहीं ..
तब तो ठीक है-- मैंने कहा.
बार बार गायब, प्रकट होकर डराते रहते हैं ..मैंने मन ही मन कहा और चाय की दुकान से उठकर गंगा जी के किनारे घुमने लगा ..

रात्रि रुकने की व्यबस्था पूछी तो 600 रु बताये गए !
मैंने वापस घाट पर आकर आशुतोष से कहा बताओ दद्दू  क्या किया जाये ? वे बोले कि रात्रि में हम लोग ऋषिकेश में सोयेंगे  . मैंने कहा की ऋषिकेश का प्रोग्राम कैसे बन गया ? वोले की जाना वैसे भी है ये दोनों साधू लोग भी नीलकंठ महादेव ही जा रहें हैं ?.......जब तक मै  घाट से घूम कर आया तब तक आशुतोष ने दोनों साधू लोंगों से काफी मित्रता कर ली थी ..
ठीक है भाई एक से भले दो , और अब दो से भले चार ..

ऑटो में लदकर चारो लोग चल दिए ऋषिकेश ... ......
ऋषिकेश पहुचकर चारो लोग त्रिवेणी घाट पर इकठ्ठा हुए , स्नान पूजन , भोजन के बाद घाट पर ही आसन लगा लिया ! बाबा जी ने कहा बच्चा चिलम भरो ... मैंने आशुतोष की तरफ देखा, आशुतोष ने कहा लाओ में भरता हूँ !  चिलम लगाकर जय भोले की ! फिर दोनों साधूओं ने भजन गाना शुरू किया ! हम दोनों ने भी भजन में उनका साथ देना शुरू कर दिया !
अब रात गहराने लगी थी और साथ में ठण्ड भी ! बड़े से घाट पर मंदिर का चबूतरा है संगमरमर का बना हुआ आस पास कई सारे भूले भटके मुसाफिर, धार्मिक लोग,  साधू , बाबा लोग चार या पांच ओरतें ने  भी अपना अपना बिस्तर लगा लिया था !
रात के दस बजे तक तो हम सब लोग अपनी अपनी बातें करते रहे ! फिर हम लोगों ने भी अपना अपना बिस्तर बिछाया , संगमरमर के फर्श पर पहले पोलिथीन फिर तहमद फिर अंगोछा , मुश्किल से पाँच या सात कदम दूर गंगा जी अपनी तेज गति से बह रही थी ! दूर मंदिरों में भजन गाने की आवाज, कुछ लोगों के हसने की आवाज, हवा में अगरवत्ती, धुप  की महक, वातावरण में ठंडक , गंगा जी के बहने की आवाज,
सारा कुछ इतना सम्मोहक था कि  भुलाने से नहीं भूलता ...
बंदा सेवा में हाज़िर है 
सोचते सोचते कब आंख लग गयी पता नहीं चला ...

अचानक एक ओरत की चिल्लाने की आवाज सुनकर आंख खुल गयी ! हम चारो लोग अपनी अपनी जगह पर उठ कर बैठ गए ! समझ में नहीं आ रहा था की माजरा क्या है ?
अचानक दो तीन पुलिस वाले आये और एक साधू एवं उस ओरत को पकड़ कर ले गए ...
बाद में पता चला कि  ओरत का आरोप था की उस साधू ने उसको छेड़ा है इतना सुनते ही हम सब की हँसी  छुट गयी !
क्या यार साधू है या ......?
आशुतोष बोला -------
खैर साधू की भी गलती नहीं है " आग और पुआल पास पास नहीं होना चाहिए ".... हा हा ..हा

जैसे तैसे  नींद भी आ गयी .......
अगले दिन हम लोगों को 15 किलोमीटर पहाड़ी पर जाना था ....
कहते है की बारिश में वहां पत्थर टूटकर गिरतें है।. रास्ते में भालू तथा अन्य जंगली जानवरों का खतरा ....
कई लोग वहां से अपनी जान गवां चुके हैं ....

क्रमश:: .....

रास्ते में लंगूरों से लड़ाई ,  मेरे पैर में चोट लगना, भालू का आक्रमण , 
मोटी  देवी का मिलना

Wednesday 4 July 2012

(2) दो भूतो से मुलाकात

जब मैने नीलकंठ महादेव जाने के बारे में आशुतोष से कहा तो वह इस तरह से मुझे देख रहा था कि  उसकी आँखों में एक साथ कई भाव आये !
ठीक है भाई चलने कि तैयारी भी करनी है
अगले दिन स्टेशन जाकर पता किया कि  ट्रेन का टाइम टेबल क्या है पता चला कि अभी  डाइरेक्ट बनारस से हरिद्वार कोई ट्रेन नहीं है , आशुतोष से बोले तो वो बोला कि  पहले दिल्ली चलते हैं वहां से हरिद्वार के लिए बहुत ट्रेन हैं ! ठीक है तो दिल्ली का ही टिकेट ले ले लेते है  मैंने कहा, ओर दिल्ली के दो टिकेट ले लिए, ट्रेन का समय दो घंटे बाद था . सो मैंने आशुतोष को सामान के पास बैठा दिया और खुद "हुमन सायकोलोजी" का अध्यन करने स्टेशन पर घुमने लगा !
मेरी यह आदत है कि वैसे तो में एक एकांतवासी प्राणी हूँ पर भीडभाड वाली जगह पर टाइम पास करने के लिए फेस रीडिंग करने लगता हूँ ! कुछ स्पेशल नहीं, वही चाय वालों कि  कानफोडू आवाजें , गुमसुम से लोग, खिलखिलाते बच्चे, नियमित अन्तराल पर होने वाला अनोंसमेंट , हटो हटो की आवाजें लगाते कुली , बीच बीच में ट्रेन का साईंरन ,
आखिर हमारी ट्रेन भी आ गयी पर यह क्या ?????????
इस तरह से लटकते, ठुसे हुए लोग मैंने इससे पहले नहीं देखे थे ,  मैंने सोचा कि  अब क्या करेंगे .?????
थोड़ी समय बाद आईडिया आया कि  चलो रास्ता मिल गया ..! आशुतोष अभी भी मेरी तरफ देख रहा थे . मैंने कहा कि  सामान उठाओ और वो मेरे पीछे पीछे चल दिए मैंने भी स्लीपर क्लास में गेलरी में दोनों बैग रख दिए ! तब आशुतोष ने कहा कि  हमारे पास टिकेट तो जनरल का है और घुस गए स्लीपर में ! मैंने कहा जब टी.टी . आएंगे तब देखा जायेगा .
फिर हम दोनों ने गेलेरी में पेपर बिछाया और दोनों बैठ गए .. थोड़ी देर बाद ट्रेन भी रेंगना शुरू हो गयी .. और जैसे ही ठंडी हवा ने हमको छुआ कि झपकी लगना  शुरू हो गयी.
अचानक शोर के कारन मेरी आँख खुल गयी . दो  टी।.टी।. ब्लैक सूट  पहने हुए  टिकेट टिकेट चिल्ला रहे थे .  मैंने भी सोचा कि  आओ महाराज तुम्हारा ही प्रतीक्चा कर रहे थे ., सारे बिना टिकेट वाले लोगों को पकड़कर वो गलेरी में ही ला रहे थे हम लोग भी उठ कर खड़े हो गए , टी।.टी।. जी मेरे पास आये और बोले की टिकेट . मैंने भी जनरल का टिकेट दिखा दिया फिर बोले दो लोगों का जुरमाना 500 रु लगेगा . मैंने कहा महाराज गरीब आदमी हैं कुछ रहम कीजिये . उसने मेरा ऊपर से नीचे निरीक्चन किया और बोला शकल से तो लगते नहीं हो ..मैं भी विनीत भाव से बोला  महाराज गरीब शकल से नहीं जेब से पहचाने जाते हैं .. बोला ठीक है 400 रु निकालो या साथ चलने को तैयार रहो . तब तक ट्रेन ने कोई स्टेशन आने की सूचना दी , मैंने कहा भैय्या  100 रुपया है कहिये तो दे , वह बोला नहीं अभी g r p थाने बिठाएंगे तब तुम पूरे 500 रु निकालकर दोगे . मैंने आशुतोष की तरफ  देखा फिर इशारे इशारे में उसे समझा दिया की स्टंट करने के लिए तैयार रहे ..
स्टेशन आ रहा था  ...गाड़ी की रफ़्तार भी कम हो रही थी .. उस टी।.टी।. के साथ चार पांच मुस्टंडे G R P के सिपाही भी थे! उन सिपाहियों ने हमारे जैसे 15-20 लोगो को  गलेरी में इकठ्ठा किया हुआ था ! मैने आशुतोष को पीछे हटने का इशारा किया ! आशुतोष भी  मेरे प्रोग्राम के बारे में समझ गया और पीछे हटने लगा ! वह टी।.टी।. और G R P के सिपाही स्टेशन की तरफ मुह किये थे और में एवं आशुतोष गलेरी के दूसरे दरवाजे की तरफ खिसकने लगे जैसे ही ट्रेन थोड़ी धीमी हुई और उन लोगो का ध्यान हमारी तरफ से हटा, पहले मै ट्रेन का हंडल पकड़कर ट्रेन के चलने की दिशा में भागते हुए उतरा और उसके बाद आशुतोष ! तब तक बाकी लड़के भी समझ गए कि क्या हो रहा है वो भी हम लोगो के पीछे भाग निकले ! हम लोग ट्रेन के विपरीत दिशा में भाग रहे थे .. सबसे आगे में, उसके पीछे आशुतोष, तथा उसके पीछे 5 या 6 लड़के इन सबके पीछे 2 या 3  G R P के मोटे मोटे तोंद वाले सिपाही.....( सीटी बजाते हुए )...
मैंने भी पलटकर नहीं देखा कि कौन कितना दूर है बस भागता रहा, पूरा स्टेशन पार करने के बाद जंगल शुरू हो गया ! तब मैंने रुककर पलटकर देखा आशुतोष भी भागते हुए आ रहा था ( तब मैंने जाना कि स्लिम होना भी फायदेमंद होता होता है ) 
तब तक आशुतोष भी हाँफते हुए मेरे पास आ गया था ! हम दोनों लोग हँसते हँसते लोटपोट थे ! तब मैंने अपनी शर्ट बदली और कुछ देर बाद वापस स्टेशन चल दिए . चूँकि जनरल का टिकेट हमारे पास था इसलिए अगली ट्रेन तक हमें इंतजार करना था....  


खैर अगली गाड़ी से हम सही सलामत दिल्ली पहुँच गए और फिर रात में हरिद्वार की ट्रेन का भी पता कर लिया !
हरिद्वार की ट्रेन रात  में साडे बारह बजे थी  तब तक मुझे टाइम पास के लिए  "हुमन बिहाविअर " पर रिसर्च  करना था और आशुतोष को लम्बे पड़कर सोना था ! मै आशुतोष के पास सामान छोड़कर निकल गया "पब्लिक लैब "में...  


चारो तरफ सर ही सर दीख रहे थे .. छोटे बच्चे रो रहे थे, कुछ लड़के एक तरफ झुण्ड बनाकर हसी मजाक  कर रहे थे, तीन चार महिलाएं अपनी कचर कचर लगाये जा रहे थी .कुछ लोग बड़ी मुस्तैदी से अपने सामान की रच्छा कर रहे थे, एक लड़की अपने बड़े से बैग के ऊपर बैठी हुई थी वह इधर उधर देखकर बार बार अपने पर्स से एक छोटा सा शीशा निकालकर अपने होंठो कि  लिपस्टिक ठीक करती और वापस रख देती . जब उसने मुझे देखा कि  मै उसे देख रहा हूँ तो वह मेरी तरफ पीठ करके बैठ गई .   वहीँ झुण्ड में एक गन्दा सा आदमी बारी बारी सबके सामान को घूम घूम कर घुर कर देख रहा था ! मुझे लगा कि  ये तो शकल से ही चोर लग रहा है  !

तब तक टिकेट विंडो पर भीड़ कम हुई तो मै भी टिकेट के लिए लाइन में लग गया , जल्दी ही टिकेट भी मिल गया तो मै वापस आशुतोष के पास लौट गया ! महाराज अभी भी लम्बी तानकर  सो रहे थे  ! मैंने उठाया तो उठते ही वोले ट्रेन आ गयी ? ....
मैंने कहा ट्रेन नहीं आई अब मुझे आराम करना है ट्रेन आ जाये तो मुझे बताना .. इतना कहकर मै उनकी जगह पर लेट गया और आँख बंद कर ली ! ...

मुझे भी थका होने के कारण ज्यादा ही गहरी नींद आ गयी , जब आशुतोष ने मुझे उठाया तो मैंने भी सीधे बैग उठाकर बोला कहाँ है ट्रेन ? आशुतोष के इशारा  पर दोनों ट्रेन की दिशा में चल दिए !
चलो यहाँ पर सीट मिल गयी .. और दोनों आराम से बैठ गए ..थोड़ी देर बाद ट्रेन भी धीरे धीरे रेंगने लगी ....
आशुतोष तो 15-20 मिनट के बाद ही झपकी लेने लगा और मै अपने विचारों में खोने लगा ,मै सोच रहा था कि  अनजान सफ़र,   अनजाना  हम राही,   क्योंकि  मै इससे पहले "नीलकंठ महादेव " पर नहीं गया था ! और मै   एक अपरिचित आदमी के साथ था !
पर मेरी सिक्स्थ सेन्स और फेस डिटेक्शन पॉवर के अनुसार मै  एक सही व्यक्ति के साथ था ... 


यही सोचते सोचते मै कब सो गया मुझे खुद पता नहीं ...

अचानक मेरी आँख खुली जब मुझे अपने कम्पार्टमेंट में दो अजीब सी आकृतियां दिखाई दी ! यहाँ मैंने आपकी और अपनी सुविधा के लिए एक चित्र लगा दिया है ताकि आपको समझने में दिक्कत न हो और मुझे ज्यादा लिखना न पड़े !
वे दोनों मुझे ही घुर घूर कर देख रहे थे , पहले तो मै  भी डर गया कि यह क्या है ?
फिर मैंने अपने आप पर संयम रखते हुए उनसे बोला ----
"बाबा जी सीता राम ",
"सीता राम बच्चा " उनमे से एक ने कहा और मेरे पास फर्श पर बैठ गया ..
मैंने मन ही मन बजरंग बलि का नाम लिया ओर कहा "प्रभु रक्छा "...
मैं फिर से झपकी लेने लगा था .....

कुछ समय बाद जब मेरी आँख खुली तब मैं अचानक चोंक गया दोनों महानुभाव गायव थे ! मैंने कहा की कहाँ गए अभी तो यही थे . बीच में ट्रेन भी कहीं नहीं रुकी फिर ये दोनों कहाँ गए ?????????


अगला भाग शीघ्र ही :----

आगे दोनों का प्रकट होना ;;      हरिद्वार का गंगा स्नान ,               ऋषिकेश के लिए प्रस्थान ,        15 किलोमीटर पहाड़  की पैदल यात्रा 






Tuesday 3 July 2012

(1) मनमौजी घुमक्कड़

प्रिय  दोस्तों  !
यह  मेरा  पहला ब्लॉग  है तो  मैंने सोचा  कि किसी तीर्थ यात्रा का विवरण ही सुनाओ !
एक  बार मन थोडा सा विरक्त था तो वाराणसी भ्रमण पर निकल आया ! वहां पर सभी घाटों पर बारी बारी से स्नान किया सोचा मन थोडा शांत होगा पर कम्बक्त शांति नहीं मिल रही थी ! सोच रहा था की जिन्दगी अजीब चीज है। कभी हँसाती है तो कभी रुलाती है मन में तरह तरह के दार्शनिक विचार उठ रहे थे , मैं एक घाट पर बैठा गंगा जी के जल को ध्यान से देख रहा था कभी जल मेरे पास आता कभी मुझसे दूर चला जाता , मै सोचता    रहा शायद जिन्दगी इसी  का नाम है . कभी जिन्दगी में ख़ुशी आती है कभी गम पर हम लोगों को अपना प्रवाह नहीं रुकने देना है "  चलते रहो -चलते रहो " यही जिन्दगी का नियम है . मुझको भी महात्मा बुद्ध  की तरह "परम ज्ञान " कि प्राप्ति हो गयी थी !



तो सोचा ज्ञान प्राप्त करने के लिए अभी बहुत उम्र पड़ी है , चलो थोडा मोज मस्ती कि जाये . में निर्जन घाट से उठा और थोड़ी भीड़- भाड़ वाले घाट पर आ गया. वहां पर हर कोई अपने अपने काम में व्यस्त था किसी को अपने पाप धोने थे, किसी को पूर्वजो का श्राद्ध करना था ,  कोई पिकनिक मनाने आया था . मै घाट के एक कोने में बैठकर प्रभु की लीला को  देख रहा था, कई साधू संत अपने लम्बे लम्बे केश फैला कर सुखा रहे थे, कई पण्डे  अपनी अपनी लीला दिखाने में लगे थे ,
" ए भैया तनिक बात सुनी इधर हम तुमनी को 51 रु में गंगा जी की पूजा करवाई दिहन "
"आवां आवां भैया इहाँ आवां "
मै भी सारा द्रश्य देखकर चुपचाप मुस्करा रहा था .

कुछ लोग समझदार थे एक सदस्य को सामान रक्छा का भार  देकर बाकि लोग स्नान करने चले गए थे
 .
तभी मेरी नजर एक अधेड़ उम्र के व्यक्ति पर पड़ी वह चुपचाप घाट के एक किनारे पर बैठकर किसी सोच विचार में डूबा हुआ था . खिचड़ी पके हुआ बाल , चेहरे पर चिंता कि लकीरें , न उसे दीन से मतलब ना दुनिया  से उसको देखकर कोई भी सोच सकता था की यह किसी गहरी परेशानी में है .
मैंने सोचा कि इससे बात कि  जाये . वैसे भी मै अकेला था और मेरा कोई मित्र मेरे साथ नहीं था . मै भी अपनी जगह से उठकर उसके पास वाली जगह पर बैठ गया . कुछ देर तक दोनों यूं ही बैठे गंगा जी कि धारा को देखते रहे . उसने मुझे एक नजर देखा फिर चेहरा घुमा लिया .
मुझे ध्यान है बातचीत मैंने ही प्रारंभ की थी . थोड़ी देर परिचय के बाद कुछ और धार्मिक बातें होती रही . एक पण्डे कि हरकत को देखकर जब मैंने उसकी तरफ इशारा किया तब मैंने उसके चेहरे पर पहली बार मुस्कराहट देखी . लगभग एक या दो घंटे में हम लोग काफी घुल मिल गए . तब उसने अपनी उदासी कि वजह बताई कि  उसकी पत्नी से उसकी लड़ाई हुई है एवं उसका मन अब घर में नहीं लगता तथा अब वह सन्यासी बनना चाहता है .
यह सुनते ही मैंने मन ही मन में कहा " हे प्रभु तेरी भी लीला अपरम्पार ".
"ठीक है" मैंने उससे कहा चलो जब तक सन्यासी नहीं बनते तब तक इस भोलेनाथ की नगरी की सैर की जाये . मेरे इतना कहते ही दोनों एक साथ हस पड़े . फिर दोनों की राह कुछ दिन के लिए एक हो गयी .
शाम हो चली थी, वाराणसी में न मेरा कोई ठिकाना था न ही  उसका ( हाँ बातचीत में उसने अपना नाम "आशुतोष " बताया था ). शाम के छे बजे अँधेरा होना शुरू हो गया था . शायद साडे आठ या नो बजे तक हमको एक सस्ती धर्मशाला में रुकने की जगह मिल गयी . अपना थोडा बहुत सामान जो हमारे पास था, मेरे पास एक बैग जिसमे एक अंगोछा और एक जोड़ी कपडे थे एवं उसके पास केवल एक पोलिथीन में तहमद था . खैर वो तो सन्यासी ही बनने आया था. अपना सामान धर्मशाला में छोड़कर हम लोग वापस एक घाट पर आ गए . वहां पर एक लंगड़े साधू को देखा जो अपने शरीर पर मुल्तानी मिटटी की मालिश कर रहा था. जब उसने अपना काम  पूरा कर लिया तो थैले की जेब से एक शीशी निकाली और इधर उधर देखकर वो शीशी को पी गया . मैंने  उसकी तरफ  से ध्यान हटाकर गंगा जी की सुन्दरता देखनी प्रारंभ की . ठंडी ठंडी हवा चल रही थी ,चारो तरफ पत्ते के दोनों में छोटे छोटे दिए जल रहे थे , अगरबती , धूप आदि की महक बातावरण में घुली हुई थी . वह नजारा भुलाने से भी नहीं भूलता .
थोड़ी देर तक हम दोनों अपने आप में खोये रहे . जब थोड़ी ठण्ड सी  लगने लगी तो हमने सोचा की अब वापस चलना चाहिए . रस्ते में वाही लंगड़ा साधू आश्चर्यजनक रुप से तेज तेज चिल्लाकर भीख मांग रहा था . भीड़ ज्यादा होने की वजह से हमें उसके बिलकुल पास से निकलकर जाना पड़ा . उसके पास से अगरबत्ती और धुप की महक के आलावा एक ऐसी महक भी आ रही थी जो मेरे लिए सर्वथा परिचित थी , वह "देशी दारू " की महक थी .

खैर एक सस्ते से होटल पर हम दोनों ने रूककर पचास रुपये में भर पेट भोजन किया और धरमशाला कि ओर चल दिए . रस्ते में मैंने आशुतोष से  पूछा कि कल का क्या प्रोग्राम है तो वो बोला की रूम पर पहुंचकर बताएँगे ! धरमशाला में हम दोनों को बिछाने के लिए सिर्फ एक एक दरी दी गयी थी  ! बहुत सारे लोग सामूहिक रूप से साथ साथ एक हाल  में सो रहे थे ! 
वहां पहुँचने पर उसने मुझसे कहा कि मेरे पास पैसे बहुत कम हैं इसलिए सारा कुछ तुम्हारे ऊपर है कि तुम कहाँ घूमना चाहते हो ?
"ठीक है " मैंने कहा और अगले दिन का प्रोग्राम बनाने लगा .......

सुबह लगभग पांच बजे मेरी आंख खुली ! कुछ धार्मिक लोग ब्रम्ह मुहुर्त में ही गंगा स्नान के लिए चले गए थे , और कुछ तैयार हो रहे थे ! मैंने भी आशुतोष को आवाज लगायी वो भी चोंक कर उठ बैठा ! इसके बाद दोनों लोगों ने दैनिक क्रिया से निवृत होकर गंगा जी के लिए प्रस्थान कर दिया !
रस्ते में ठंडी शुद्ध हवा एवं वातावरण में मंदिर की घंटिया तथा अगरबती , चन्दन, धुप की महक ..
गंगा जी के किनारे पहुँच कर नमन किया फिर हरि का नाम लेकर गंगा जी में कूद पड़े . गंगा मय्या ने हमको ऐसे पकड़ा जैसे कोई मां अपने बच्चे को पकडती है . करीब आधा घंटा नहाने के बाद जब ठण्ड लगी तो वापस किनारे पर आये और कपडे बदलकर गंगा जी की मानसिक पूजा की !
घाट पर वापस आकर देखा तो साधू संत पूजा अर्चना में व्यस्त दिखे . कुछ खास नहीं बस कल शाम  वाला ही वातावरण था ! वापस आते समय में अचानक चोंक गया सीडियों पर एक पेड़ के नीचे वहीँ कल  रात वाला लंगड़ा साधू  सो रहा था . उसके सारे कपडे अस्त व्यस्त थे . उसके पास ही उसके गंदे से कपडे , एक डंडा कुछ बर्तन एवं पास में ही उसकी दारू की शीशी पड़ी थी !

आशुतोष ने मुझसे कहा की ऐसे ही साधुओं की वजह से हिन्दू धरम बदनाम होता है। फिर हम आगे चल दिए ---बाहर बाजार में---
एक ठेले पर इडली साम्भर देखकर मै चोंका  तो दुकानदार ने बताया की यहाँ पर साउथ वाले लोग भी अच्छी संख्या में  आते है ! इसलिए इडली साम्भर एक साथ बिक जाता है'--
 हमने इडली साम्भर का नाश्ता किया और आवश्यक कैलोरी लेने के बाद मंदिरों  के दर्शन के लिए कूच कर दिया .
हम दोनों अब तक बहुत अच्छे मित्र बन चुके थे . कई छोटे छोटे मंदिर और बाबा काल भैरव मंदिर का पैदल ही घुमने के बाद थक गए और फिर रूककर थोडा चाय बिस्कुट  लेने के बाद आराम किया !
आगे चलते चलते कबीर जी की जन्मस्थली  पहुंचे . यहाँ गंगा जी के किनारे पर कबीर के चेलों द्वारा एक बिशाल मंदिर बनबाया गया है जिसे देखने बहुत दूर दूर से लोग यहाँ आते है !
                                                                                                                       
यहाँ घाट पर भीड़ नहीं थी !

हम लोगों ने अपना सामान यहाँ रखकर गंगा जी में हाथ मुह धोया एवं घाट के किनारे पर ही खाने की  व्यवस्था  बन गयी फिर तो एक पेड़ के नीचे पोलिथीन बिछाकर पैर फैलाकर लेट गए ! लेटते  समय मैंने एक बार इधर उधर का निरीक्षण किया तो बंदरों का झुण्ड दूसरे पेड़ पर दिख गया मेने सोचा की एक दो कपडा है ! वो भी ये उठा ले जायेंगे तो बहुत परेशानी होगी मैंने सारे कपड़ों को बैग में रखकर तकिया बनायीं और लेट गया  .लेटते  ही पता नहीं कब नींद आ गयी !......

अचानक आशुतोष ने मुझे पकड़कर हिलाया , कि  उठो उठो बहुत समय हो गया मैंने आंख मिचमिचा कर खोली तो शाम होने आई थी /  
धुप में लेटने से गर्मी लगने लगी थी , हम लोग फिर से कपडे संभाल कर गंगाजी में कूद पड़े .
थोड़ी देर नहाने के बाद जल्दी जल्दी कपडे पहने और  अपनी धरमशाला की ओर चल दिए  .. 


रात का खाना खाने के बाद आशुतोष ने पुछा कि कल का क्या प्रोग्राम है ? मेने कहा की कल मुझे डेल्ही के लिए निकलना है ..तुम बताओ तुम अब क्या करोगे ?
आशुतोष ने कहा कि "यहीं कोई आश्रम देखूँगा और आश्रम में ही रूककर सेवा करूंगा ".
तब मेने उसकी आँखों में बेचैनी देखी , मैंने कहा कि  अगर कहीं घूमने की इच्छा हो तो बताओ ?
वो वोला नहीं यार मेरे पास पैसे नहीं है . मैंने कहा की जगह बोलो कहाँ चलना चाहते हो ?

उसने कहा की एक बार नीलकंठ महादेव जाना  चाहता हूँ ..... पर छोड़ो फिर कभी जाऊँगा ! वह मुझसे बोला कि तुम अब कब मिलोगे ?
मैंने कहा नीलकंठ महादेव जाने के लिए तैयार हो जाओ ......  कल हम तुम साथ में चलेंगे ..
वो मुझे देखता रहा जैसे कुछ कहना चाहता हो और में सिगरेट पीने धरमशाला के बाहर चला गया ...

आगे बिना टिकेट ट्रेन यात्रा , दो भटके मुसाफिर से मिलना , भालू  का आक्रमण , 15 फीट पहाड़ी से कूदना 


अगला भाग जल्दी ही.......
  क्रमश: