कुछ लोगों ने ई-मेल के द्वारा मुझे मेरी पिछली पोस्ट "अबला कौन ?" पर विरोध जताया कि आप इस पोस्ट के द्वारा हिंसा को बढ़ावा दे रहे हो ! क्या हिंसा हर समस्या का समाधान है ? क्या इस समस्या (नारी उत्पीडन ) का शांति पूर्वक कोई समाधान नहीं है ?
कोई भी नारी उत्पीडन का वाकया होता है तो हम अहिंसा का रास्ता ही अपनाते हैं ! पीडिता लड़की या महिला रोते रोते अपने घर आती है ! उसके घर वाले भी उसके रोने में उसके साथ हो जाते हैं ! फिर घर वाले और लड़की दोनों मिल कर रोते हैं ! रोना धोना ख़त्म करने के बाद घर में मीटिंग बैठती है कि आगे क्या किया जाये ? पोलिस में रिपोर्ट लिखाई जाये या नहीं ? रिपोर्ट लिखाने और न लिखाने के फायदे और नुकसान का मैथ लगाया जाता है ? 80% लोग (प्रतिशत कम हो रहा है ) रिपोर्ट नहीं लिखाते हैं यह भी एक अहिंसा है इसके बाद अगर रिपोर्ट लिखा भी दी तो तमाम बिचोलिये और खुद पुलिस आकर समझौता कराने की पैरवी करते हैं ! इसके बाद भी अगर पीड़ित परिवार नहीं मानता है तो उसे डराया धमकाया जाता है ! कैसे भी पीड़ित परिवार नहीं मानता है तो उसे केस लड़ने के लिए गवाह नहीं मिलते ! कभी कभी तो लड़की का मर्डर हो जाता है और केस बन जाता है सुसाइड का !
क्या है ये ? सब पीड़ित परिवार की अहिंसा ही तो है !
जैन धर्म के अनुसार हिंसा चार प्रकार की होती है -
* आरंभी- जीवन को बनाए रखने के लिए थोड़ी बहुत हिंसा तो होगी ही। चलने-फिरने, नहाने-धोने, उठने-बैठने, खाना बनाने जैसे कामों में जो हिंसा होती है वह आरंभी हिंसा है।
* उद्योगी- नौकरी, खेती, उद्योग, व्यापार आदि जीवकोपार्जन के साधन अपनाने में जो हिंसा होती है वह उद्योगी हिंसा है।
* प्रतिरोधी हिंसा- अपने सम्मान, संपत्ति और देश की रक्षा करने में, आतंक और आक्रमण के विरुद्ध उठ खड़े होने में जो हिंसा होती है वह प्रतिरोधी हिंसा है।
* संकल्पी हिंसा- युद्ध थोपने, सांप्रदायिक विद्वेष फैलाने, शिकार करने, धार्मिक अनुष्ठानों में बलि चढ़ाने, दूसरों को गुलाम बनाने, गैर की जमीन हड़पने, गर्भपात करने/कराने, सत्ता और बाजार पर काबिज होने आदि में जो हिंसा होती है वह संकल्पी हिंसा है
इस प्रकार उपर्युक्त में से मैं प्रथम तीन हिंसा करने को हिंसा नहीं सम्मान पूर्वक जीने के लिए जरूरी समझता हूँ !
और मैंने अपनी पिछली पोस्ट "अबला कौन" में उन्ही हिंसा को करने के लिए कहा है !-.
इतिहास इसका गवाह है की जब तक किसी को हिंसा से न डराया जाये तब तक सामने वाला हमसे प्रेम भी बिना डर के नहीं करता है !
जब रामचंद्र जी लंका पर चढाई के लिए समुन्द्र से प्रीत पूर्वक रास्ता मांग रहे थे -तब समुन्द्र भी उनकी नहीं सुन रहा था जब उन्होंने परेशान होकर समुन्द्र को सुखाने के लिए अपने धनुष को उठाया - तब उसने झट से उनको पार जाने का रास्ता दे दिया !-
विनय न मानत जलधि जड़ गए तीन दिन बीत '
बोले राम सकोप तब भय बिन होत न प्रीत "
इस प्रकार मेरे अनुसार अपने आत्म सम्मान और आत्म रक्छा के लिए की गयी हिंसा, हिसा नही होती !
अगर अब भी किसी को कोई शंका हो तो वह मुझे ई मेल (shravansom444@gmail.com) पर अपनी शंकाओं से अवगत करा सकता है -
धन्यवाद !
सहमत हूँ आपसे .सार्थक पोस्ट .आभार
ReplyDeleteThanks Shikha Ma'm
DeleteFor Reading and Appreciating my Blog.
हिंसा के प्रकारों पर सुन्दर प्रस्तुतिकरण!!
ReplyDeleteप्रतिरोध करना असंकल्पवान के लिए अवश्यंभावी है।
चिंतन करना पडेगा कि सबलता का भय सदैव वांछित परिणाम देता है अथवा नहीं।
यह भी देखना होगा कि हिंसा (मात्र इस प्रकरण पर नहीं) किसी प्रतिशोध के चक्र की निर्माता तो नहीं हो रही। और यह भी कि इन प्रयासों में समाधान निश्चित हो।
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♥♥नव वर्ष मंगलमय हो !♥♥
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अपने आत्म सम्मान और आत्म रक्षा के लिए की गयी हिंसा, हिसा नही होती !
बहुत सही कहा आपने ...
श्रवण सोमवंशी जी !
आपका आलेख आज के संदर्भों में और भी प्रासंगिक है ।
समाज को दिशा दिखाते लेखन के लिए साधुवाद !
हार्दिक मंगलकामनाएं !
मकर संक्रांति की अग्रिम शुभकामनाओं सहित…
राजेन्द्र स्वर्णकार
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