Saturday 7 July 2012

बहुरूपिया साधू -----


अपनी इस जीवन में मै अपने अज्ञात वास के दौरान कई साधू , महात्माओं, अघोरिओं से मिला ! हालाँकि मैं उस समय ऐसे वेश भूषा में था कि वो साधू या स्वयं मेरे घर वाले मुझे देखते तो नहीं पहचान पाते ! मेरे इस वेश से मुझे उन्हें समझने में अत्यंत आसानी हुई ! एक तो वो मुझे भी अपनी तरह नाकारा समझते थे और मैं भी खुल कर उनसे बातें कर सकता था !
मेरे दिमाग में एक प्रश्न हमेशा से था- कि साधुओं की भूमिका हमारे समाज में कैसा हो ?
क्या आज के समाज में जैसे साधू ,संत, महात्मा, अघोरी दिख रहे हैं, साधू ऐसे ही होने चाहिए ? मेरे विचार से आप सबकी राय होगी नहीं ..
अब में आपको कुछ साधुओं का उदाहरण देता हूँ .---

प्रथम उदाहरण --
वाराणसी के एक निर्जन घाट पर एक हट्टे कट्टे बाबा चिंतन ( सोच -विचार ) की मुद्रा में बैठे हुए हैं कोई विशेष मेकअप नहीं था उनका बस गेरुआ रंग के कपडे पहन रखे थे ! परिचय हुआ तो बताया गया कि कोलकाता के रहने वाले हैं, किसी अच्छी कम्पनी में सुपरवाईजर थे , ग्रेजूएट है ( बी।.ए ) , आठ साल हुई घर नहीं गए, एक मंदिर में रात्रि विश्राम करते है, दिन भर गंगा जी के घाट पर या किसी मंदिर के प्रांगड़ में पड़कर सोते रहते है! कुछ विदेशी लोग घाट पर आते है तो उन्हें उलटी सीधी कहानियां सुनाकर पैसे ऐंठ लेते हैं ! चिलम पीते है ! इष्ट देव के बारे में पुछा की बाबा किसकी पूजा करते हो  तो बोले गाड एक ही है मैं सबको मानता हूँ ! भोजन के बारे में पूछने पर बताया की कहीं भी कर लेते है , धार्मिक नगरी है कहीं न कहीं मंदिर में भंडारा चलता रहता है।.
द्वितीय उदाहरण ---
मध्य प्रदेश के इंदौर शहर के पास एक ऐतिहासिक जगह है "मांडव " वहां पर पहाड़ी के नीचे गुफा जैसी जगह में नीलकंठ नाम का शिव जी का एक प्राचीन मंदिर है , मंदिर के चबूतरे पर तीन कृशकाय साधू बाबा बैठे हुए "भोजन" के बारे में चर्चा कर रहे हैं !
कि यहाँ तो कोई आदमी ये भी नहीं पूछता कि बाबा भोजन, पानी कर लो ! सब अधार्मिक लोग हैं , जहाँ साधू संतो कि इज्ज़त नहीं होती वहां जाना भी बेकार है,
लेखक पहले तो उनकी चर्चा सुनता रहा फिर घुस पड़ा उनके बीच -- बाबा जी पायं लागन, "जीते रहहो बालक"  प्रत्युत्तर मिला ! पहले इधर उधर की बातें करने के बाद परिचय  पर आये ----
बताया गया की फैजाबाद , अयोध्या के पास के रहने वाले हैं ! यहाँ नर्मदा जी की परिक्रमा करने आये हैं ! अब तक ज्यादातर शिवलिंग की यात्रा कर चुके हैं ! शिव जी के परम भक्त हैं ! भिकछा पर गुजारा करते हैं ! ट्रेन में  फ्री सफ़र उनका जन्म सिद्ध अधिकार है !

अगला प्रश्न्न :-

बाबा जी सन्यास कब लिया और क्यों ?
अब तीनो कुछ देर के लिए साइलेंट हो गए ---
घर ग्रहस्ती में मन नहीं लगा, पिता जी से लड़कर बचपन में घर से भाग गए थे -एक साधू बाबा ने अपना चेला बना लिया, एक ने कारण नहीं बताया- कहा ईश्वरीय प्रेरणा थी बस ,,
जब तीनों उठकर चलने लगे तो एक चाय की दुकान पर सभी को नाश्ता पानी करवाया, सीताराम कह् कर विदा ली !

तृतीय उदाहरण --- 
उत्तर प्रदेश के बरेली शहर के निकट रामगंगा नदी के किनारे चोबारी नाम का धार्मिक स्थान  है , वहीँ नदी किनारे पर कुष्ट आश्रम , कई छोटे बड़े मंदिर, छायादार पेड़ स्थित है ! कई साधुओं के झुण्ड विराजमान थे ! में सभी झुंडो के पास से निकला पर मुझे कहीं भी "प्रभु" चर्चा नहीं सुनाई दी ! इसके बजाये मठों, मंदिरों की पुरोहिताई कब्जाने के प्रयास, चिलम, गांजे की बातें ...और कुछ ऐसी बातें जो मैं यहाँ बता नहीं सकता हूँ !
एक महाराज अकेले अकेले ही चिलम सुटयाने में लगे हुए थे  ! मैं भी उनके पास जाकर बैठ गया राम राम हुई !
तमाम तरह की परिचर्चाओं के बाद पता चला कि वह यहाँ के (उ..प्र।.) के रहने वाले नहीं हैं ! बिहार और बंगाल के बोर्डर पर उनका गाँव है ! बहुत छोटे थे किसी साधू ने उन्हें अपना चेला बना लिया था ! घर में बहुत गरीबी थी ! उनके 6 भाई बहन थे , पिता जी ने खुद ही साधू के साथ भेज दिया ! वह साधू उनसे अपने सारे काम करवाता था , कपडे धोना , खाना बनाना , मंदिर की साफ सफाई करना , रात में साधू के पैर दबाना आदि ! एक दिन साधू बाबा स्वर्ग सिधार गए तो मंदिर मे दूसरा साधू  आ गया और उसने इनको मार कर भगा दिया !
अब क्या करते है --?
जवाब था --बस बही दिनचर्या कि तीर्थ यात्रा करना, भिक्चा मांगना, दो साथी और हैं कहीं गए हुए हैं वो भी आते होंगे ..
मैंने भी इनसे ये जानकारी लेने के लिए 20 रु खर्च किये थे तब जाकर साधू बाबा थोड़े इमोशनल हुए थे !

 चतुर्थ उदाहरण -- 
यह आपको समझाने की आवश्यकता नहीं है कि स्वामी नित्यानंद , निर्मल बाबा , और इनके जैसे जाने कितने बाबा समाज में क्या कर रहे हैं ! समाज से गंदगी साफ़ करने की जगह और फैला रहे है।. इन थोड़े से लोगों की वजह से पूरा धर्म बदनाम हो रहा है।. इसके जिम्मेदार हम और आप सब लोग हैं जो कि इनको बढावा दे रहे हैं ...


निष्कर्ष :-
साधू संत या तपस्वी एक पदवी है जो लोगों के द्वारा प्रदान की जाती है ! हम लोग ये पदवी किसी भी लाल गेरुआ वस्त्र पहनने वाले को प्रदान कर देते है।. चाहे वह घर से, जिम्मेदारी से भागा हुआ हो , चाहे वह अपराधी हो, निकम्मा नाकारा पुरुष हो, कोई भिखारी हो,  कोई व्यक्ति हो ! पुलिस भी आस्था धर्म की आड़ में छुपे इन अपराधियों को नहीं पकड़ पाती क्योंकि ये हम लोगों की ढाल बनाकर कानून के आगे खड़े हो जाते हैं।.

मेरा आदर्श हर वह व्यक्ति साधू , संत या महात्मा है जो समाज के लिए कुछ करता है चाहे वह कुरीतियाँ मिटाना हो या समाज की अन्य समस्याएं दूर करना हो

"पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य --- भारत के एक युगदृष्टा मनीषी थे जिन्होने अखिल भारतीय गायत्री परिवार की स्थापना की। उनने अपना जीवन समाज की भलाई तथा सांस्कृतिक व चारित्रिक उत्थान के लिये समर्पित कर दिया। उन्होने आधुनिक व प्राचीन विज्ञान व धर्म का समन्वय करके आध्यात्मिक नवचेतना को जगाने का कार्य किया ताकि वर्तमान समय की चुनौतियों का सामना किया जा सके। उनका व्यक्तित्व एक साधु पुरुष, आध्यात्म विज्ञानी, योगी, दार्शनिक, मनोवैज्ञानिक, लेखक, सुधारक, मनीषी व दृष्टा का समन्वित रूप था।"


"महर्षि स्वामी दयानन्द सरस्वती-- एक महान चिन्तक, समाज-सुधारक व देशभक्त थे।महर्षि दयानन्द ने अनेक स्थानों की यात्रा की। उन्होंने हरिद्वार में कुंभ के अवसर पर पाखण्ड खण्डिनी पताका फहराई। उन्होंने अनेक शास्त्रार्थ किए। महर्षि दयानन्द ने चैत्र शुक्ल प्रतिपदा संवत् १९३२ को गिरगांव मुम्बई में आर्यसमाज की स्थापना की।महर्षि दयानन्द ने तत्कालीन समाज में व्याप्त सामाजिक कुरीतियों तथा अन्धविश्वासों और रूढियों-बुराइयों को दूर करने के लिए, निर्भय होकर उन पर आक्रमण किया!  वे प्रचंड तार्किक थे। उन्होंने ईसाई और मुस्लिम धर्मग्रन्थों का भली-भाति अध्ययन-मन्थन किया था। अतएव अकेले ही उन्होंने तीन-तीन मोर्चों पर संघर्ष आरंभ कर दिया। दो मोर्चे तो ईसाइयत और इस्लाम के थे किंतु तीसरा मोर्चा सनातनधर्मी हिंदुओं का था, जिनसे जूझने में स्वामी जी को अनेक अपमान, कुत्सा, कलंक और कष्ट झेलने पड़े। उनके प्रचण्ड शत्रु ईसाई और मुसलमान नहीं, बल्कि सनातनी हिन्दू निकले। और कहते है अंत में इन्हीं हिन्दुओं के षडयन्त्र से उनका प्राणान्त भी हुआ।"


"स्वामी विवेकानन्द ---वेदान्त के विख्यात और प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु थे। उनका वास्तविक नाम नरेन्द्र नाथ दत्त था। उन्होंनेअमेरिका स्थित शिकागो में सन् १८९३ में आयोजित विश्व धर्म महासभा में भारत की ओर से सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व किया था। भारत का वेदान्त अमेरिका और यूरोप के हर एक देश में स्वामी विवेकानन्द की वक्तृता के कारण ही पहुँचा। उन्होंने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की थी जो आज भी अपना काम कर रहा है।"


ऐसे  होते हैं संत -----


मेरा निजी विचार है की जब कोई व्यक्ति गृहस्थ होता है तो वह केवल परिवार के बारे में ही सोच पाता है, परन्तु जब कोई सन्यासी होता तो उसे समस्त संसार अपना परिवार समझना चाहिए और उसके सुधार के लिए प्रयास करना चाहिए ! कोई भी व्यक्ति नाकारा की तरह बैठकर या गेरुआ कपडे पहन ने से ही साधू नहीं हो जाता है !
अगली बार जब आप किसी साधू या संत से मिलें तो उससे ये अवश्य पूछना कि महाराज आपने समाज के लिए क्या किया ?


(हालाँकि में इस विवादस्पद और गंभीर विषय पर लिखना नहीं चाहता था पर न जाने क्यों मेरा मन नहीं माना ) ! 


धन्यवाद !


6 comments:

  1. App sabhi ki Pratikriyaon ka aakanshi...

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  2. बहुत ही अच्छा आलेख लिखा है आपने.
    काफी समय पूर्व संत कबीर ने भी कहा था
    'बहुतक पीर कहावते,बहुत करत हैं भेष
    यह मन कहर खुदाय का मारे सो दरवेश'

    साधू का अर्थ है साधनेवाला.यानि जो अपने
    मन,बुद्धि और अंत:करण को साधे.केवल गेरुवे
    वस्त्रों से या अन्य पाखंडपूर्ण आडम्बर से मन बुद्धि
    को नही साधा जा सकता.साधना 'मनसा वाचा कर्मणा' से ही हो सकती है.

    सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.

    मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है.

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  3. Dear SHRAVAN,
    Thanks a lot for bring me here. As we all know we try to reach to Lord Vishnu, but between man and lord there is always Maya (Lakshmi). I tried so many time but always fail. Sadhu can manage with very little money or not bother to stay in comfort that really inspired me. As we Ghrashti never talked about sex, but when we listen pravachan from Brahamchari, most of them include sex in their lecture.

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    1. DEAR SURINDER SIR,

      Thanks for visiting my blog ..
      in this post i am trying to say that only managing by little money one can be a "Sadhu". Sadhu is a honour when it is given by us to somebody he would be more responsible for society.

      thanks once again..

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  4. श्रवण सोम जी, आप मेरे ब्लॉग पर आये,इसके लिए हार्दिक आभार आपका.
    आपके लेखन से तो लगता है आप का हिंदी ज्ञान किसी भी तरह से मुझ से
    कम नही है.बल्कि जो शोध पूर्ण लेख आपने लिखे हैं वे रोचक,
    धाराप्रवाह और बहुत ही अच्छे हैं.

    ब्लॉग पर आना जाना बनाए रखियेगा.

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  5. ये ब्लॉग का क्या कर डाला। पहले बहुत अच्छा था और नाम भी बदल डाला। कुछ मजा नहीं आया। :(((

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