Thursday 5 July 2012

(3) और महाराज प्रकट हो गए -----

और महाराज प्रकट हो गए -----

मैं इसी सोच विचार में बैठा था कि ये दोनों गए कहाँ . कोई बात नहीं में क्यों सोच रहा हूँ उनके बारे में ऐसा मन में कहा और झपकी लेने लगा . ...अचानक जब ट्रेन ने ब्रेक लगाये तो नींद खुली अभी थोडा अँधेरा ही था , मेरे सर के ऊपर एक गेरुआ रंग का कपडा लटकने लगा . अब ये क्या नयी आफत है . मैंने मन में कहा और खड़े होकर ऊपर वाली सीट पर देखा तो दोनों महाराज ऊपर पदमासन की मुद्रा में विराजमान थे ! पहले तो उन्हें अँधेरे में ऊपर देखकर डर गया फिर थोडा हिम्मत करके बोला अरे महाराज आप ऊपर हैं मैंने सोचा की कहाँ चले गए ?.. उन दोनो ने कोई जवाब नहीं दिया ! मैं फिर से अपनी सीट पर बैठ गया और सोचने लगा की ये दोनों ऊपर कैसे पहुँच गए ऊपर तो कोई और बैठा था  ?
खैर नींद लेना भी जरुरी था मैंने कहाँ कुछ भी हो जाये अब नहीं उठना है .
ससुरा आशुतोष घुर्र्राते हुए सो रहा था ! मैंने सोने का बहाना बनाते हुए उसके कंधे पर अपना सर मार दिया अब वो तो जाग कर सीधा हो गया और मुझे   घुर्र्रातो से निजात मिल गयी ! 
फिर आराम से आँख बंद की और कब आंख लगी पता नहीं चला ..
सुबह 9:30 या 10:00 बजे तक हम लोग हरिद्वार पहुँच गए थे अच्छा यही जुलाई का महिना था ! बारिश हो चुकी थी ! स्टेशन पर उतरकर जोर से अंगड़ाई ली और बैग संभाल कर चल दिए गंगा जी के तीरे , घाट पर ज्यादा शोर शराबा नहीं था ! एकांत घाट पर नहाने का मजा ही कुछ और होता है ..फिर से छपाक --छप कूद पड़े थे कपडे उतार कर ...पर जितनी तेज़ी से अन्दर कूदे उससे दुगनी स्पीड से वापस आ गए ! पानी इतना ठंडा था की दो मिनट में ही कुल्फी जमा दी ! में ठण्ड से ठिठुर रहा था ! बाहर  आकर जल्दी से कपडे बदले !
MAN V/S WILD में देखता था की अधिक ठण्ड से आप HYPOTHERMIA के शिकार हो सकते हैं इसलिए जल्दी से बाहर  आकर चाय की दुकान पर चाय पी ! थोडा ठण्ड से राहत मिली और साथ में उत्तरांचल का NEWS PAPER भी पढने लगा ! तब  तक स्वामी 1008 आशुतोष जी भी नहा धोकर पधार चुके थे ! मैने कहा आओ महाराज आपके ही दर्शन की इच्छा थी !  उन्होंने भी चाय का आर्डर दे दिया , में फिर से दैनिक जागरण में घुस गया और जब सारी मुख्य समाचार पड़ लिए तो पेपर आशुतोष ने माँगा --
मैंने जैसे ही पेपर चेहरे से हटाया की अचानक चौंक गया -- सामने वही रात वाले जुड़वां साधू विराजमान थे , मैंने मन में सोचा की ये दोनों इन्सान है या भूत ?
मुझे इतनी तेज गुस्सा आया की पहले तो दोनों से राम राम की,
फिर उनसे बोला महाराज एक बात पूंछु ?
आपको कोई गुप्त बिद्या आती है ?
वे बोले मतलब ?
मैंने कहा कि मतलब पानी पर चलना,  गायब होना  ???
वे बोले नहीं ..
तब तो ठीक है-- मैंने कहा.
बार बार गायब, प्रकट होकर डराते रहते हैं ..मैंने मन ही मन कहा और चाय की दुकान से उठकर गंगा जी के किनारे घुमने लगा ..

रात्रि रुकने की व्यबस्था पूछी तो 600 रु बताये गए !
मैंने वापस घाट पर आकर आशुतोष से कहा बताओ दद्दू  क्या किया जाये ? वे बोले कि रात्रि में हम लोग ऋषिकेश में सोयेंगे  . मैंने कहा की ऋषिकेश का प्रोग्राम कैसे बन गया ? वोले की जाना वैसे भी है ये दोनों साधू लोग भी नीलकंठ महादेव ही जा रहें हैं ?.......जब तक मै  घाट से घूम कर आया तब तक आशुतोष ने दोनों साधू लोंगों से काफी मित्रता कर ली थी ..
ठीक है भाई एक से भले दो , और अब दो से भले चार ..

ऑटो में लदकर चारो लोग चल दिए ऋषिकेश ... ......
ऋषिकेश पहुचकर चारो लोग त्रिवेणी घाट पर इकठ्ठा हुए , स्नान पूजन , भोजन के बाद घाट पर ही आसन लगा लिया ! बाबा जी ने कहा बच्चा चिलम भरो ... मैंने आशुतोष की तरफ देखा, आशुतोष ने कहा लाओ में भरता हूँ !  चिलम लगाकर जय भोले की ! फिर दोनों साधूओं ने भजन गाना शुरू किया ! हम दोनों ने भी भजन में उनका साथ देना शुरू कर दिया !
अब रात गहराने लगी थी और साथ में ठण्ड भी ! बड़े से घाट पर मंदिर का चबूतरा है संगमरमर का बना हुआ आस पास कई सारे भूले भटके मुसाफिर, धार्मिक लोग,  साधू , बाबा लोग चार या पांच ओरतें ने  भी अपना अपना बिस्तर लगा लिया था !
रात के दस बजे तक तो हम सब लोग अपनी अपनी बातें करते रहे ! फिर हम लोगों ने भी अपना अपना बिस्तर बिछाया , संगमरमर के फर्श पर पहले पोलिथीन फिर तहमद फिर अंगोछा , मुश्किल से पाँच या सात कदम दूर गंगा जी अपनी तेज गति से बह रही थी ! दूर मंदिरों में भजन गाने की आवाज, कुछ लोगों के हसने की आवाज, हवा में अगरवत्ती, धुप  की महक, वातावरण में ठंडक , गंगा जी के बहने की आवाज,
सारा कुछ इतना सम्मोहक था कि  भुलाने से नहीं भूलता ...
बंदा सेवा में हाज़िर है 
सोचते सोचते कब आंख लग गयी पता नहीं चला ...

अचानक एक ओरत की चिल्लाने की आवाज सुनकर आंख खुल गयी ! हम चारो लोग अपनी अपनी जगह पर उठ कर बैठ गए ! समझ में नहीं आ रहा था की माजरा क्या है ?
अचानक दो तीन पुलिस वाले आये और एक साधू एवं उस ओरत को पकड़ कर ले गए ...
बाद में पता चला कि  ओरत का आरोप था की उस साधू ने उसको छेड़ा है इतना सुनते ही हम सब की हँसी  छुट गयी !
क्या यार साधू है या ......?
आशुतोष बोला -------
खैर साधू की भी गलती नहीं है " आग और पुआल पास पास नहीं होना चाहिए ".... हा हा ..हा

जैसे तैसे  नींद भी आ गयी .......
अगले दिन हम लोगों को 15 किलोमीटर पहाड़ी पर जाना था ....
कहते है की बारिश में वहां पत्थर टूटकर गिरतें है।. रास्ते में भालू तथा अन्य जंगली जानवरों का खतरा ....
कई लोग वहां से अपनी जान गवां चुके हैं ....

क्रमश:: .....

रास्ते में लंगूरों से लड़ाई ,  मेरे पैर में चोट लगना, भालू का आक्रमण , 
मोटी  देवी का मिलना

2 comments:

  1. बढिया वृत्तांत। साधू रमता रहे तो दाग लगे न कोय।

    गाछी बाछी और दासी,तीनों संतों की फ़ांसी। बचना चाहिए।

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  2. SAHI KAHA LALIT JI...
    AGAR GHUMAKKADI ME "IN CHEEJON" SE BACH GAYE TABHI YATRA SAFAL HOGI.......

    APKE VICHARON KE LIYE
    DHANYABAD...

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