Wednesday 4 July 2012

(2) दो भूतो से मुलाकात

जब मैने नीलकंठ महादेव जाने के बारे में आशुतोष से कहा तो वह इस तरह से मुझे देख रहा था कि  उसकी आँखों में एक साथ कई भाव आये !
ठीक है भाई चलने कि तैयारी भी करनी है
अगले दिन स्टेशन जाकर पता किया कि  ट्रेन का टाइम टेबल क्या है पता चला कि अभी  डाइरेक्ट बनारस से हरिद्वार कोई ट्रेन नहीं है , आशुतोष से बोले तो वो बोला कि  पहले दिल्ली चलते हैं वहां से हरिद्वार के लिए बहुत ट्रेन हैं ! ठीक है तो दिल्ली का ही टिकेट ले ले लेते है  मैंने कहा, ओर दिल्ली के दो टिकेट ले लिए, ट्रेन का समय दो घंटे बाद था . सो मैंने आशुतोष को सामान के पास बैठा दिया और खुद "हुमन सायकोलोजी" का अध्यन करने स्टेशन पर घुमने लगा !
मेरी यह आदत है कि वैसे तो में एक एकांतवासी प्राणी हूँ पर भीडभाड वाली जगह पर टाइम पास करने के लिए फेस रीडिंग करने लगता हूँ ! कुछ स्पेशल नहीं, वही चाय वालों कि  कानफोडू आवाजें , गुमसुम से लोग, खिलखिलाते बच्चे, नियमित अन्तराल पर होने वाला अनोंसमेंट , हटो हटो की आवाजें लगाते कुली , बीच बीच में ट्रेन का साईंरन ,
आखिर हमारी ट्रेन भी आ गयी पर यह क्या ?????????
इस तरह से लटकते, ठुसे हुए लोग मैंने इससे पहले नहीं देखे थे ,  मैंने सोचा कि  अब क्या करेंगे .?????
थोड़ी समय बाद आईडिया आया कि  चलो रास्ता मिल गया ..! आशुतोष अभी भी मेरी तरफ देख रहा थे . मैंने कहा कि  सामान उठाओ और वो मेरे पीछे पीछे चल दिए मैंने भी स्लीपर क्लास में गेलरी में दोनों बैग रख दिए ! तब आशुतोष ने कहा कि  हमारे पास टिकेट तो जनरल का है और घुस गए स्लीपर में ! मैंने कहा जब टी.टी . आएंगे तब देखा जायेगा .
फिर हम दोनों ने गेलेरी में पेपर बिछाया और दोनों बैठ गए .. थोड़ी देर बाद ट्रेन भी रेंगना शुरू हो गयी .. और जैसे ही ठंडी हवा ने हमको छुआ कि झपकी लगना  शुरू हो गयी.
अचानक शोर के कारन मेरी आँख खुल गयी . दो  टी।.टी।. ब्लैक सूट  पहने हुए  टिकेट टिकेट चिल्ला रहे थे .  मैंने भी सोचा कि  आओ महाराज तुम्हारा ही प्रतीक्चा कर रहे थे ., सारे बिना टिकेट वाले लोगों को पकड़कर वो गलेरी में ही ला रहे थे हम लोग भी उठ कर खड़े हो गए , टी।.टी।. जी मेरे पास आये और बोले की टिकेट . मैंने भी जनरल का टिकेट दिखा दिया फिर बोले दो लोगों का जुरमाना 500 रु लगेगा . मैंने कहा महाराज गरीब आदमी हैं कुछ रहम कीजिये . उसने मेरा ऊपर से नीचे निरीक्चन किया और बोला शकल से तो लगते नहीं हो ..मैं भी विनीत भाव से बोला  महाराज गरीब शकल से नहीं जेब से पहचाने जाते हैं .. बोला ठीक है 400 रु निकालो या साथ चलने को तैयार रहो . तब तक ट्रेन ने कोई स्टेशन आने की सूचना दी , मैंने कहा भैय्या  100 रुपया है कहिये तो दे , वह बोला नहीं अभी g r p थाने बिठाएंगे तब तुम पूरे 500 रु निकालकर दोगे . मैंने आशुतोष की तरफ  देखा फिर इशारे इशारे में उसे समझा दिया की स्टंट करने के लिए तैयार रहे ..
स्टेशन आ रहा था  ...गाड़ी की रफ़्तार भी कम हो रही थी .. उस टी।.टी।. के साथ चार पांच मुस्टंडे G R P के सिपाही भी थे! उन सिपाहियों ने हमारे जैसे 15-20 लोगो को  गलेरी में इकठ्ठा किया हुआ था ! मैने आशुतोष को पीछे हटने का इशारा किया ! आशुतोष भी  मेरे प्रोग्राम के बारे में समझ गया और पीछे हटने लगा ! वह टी।.टी।. और G R P के सिपाही स्टेशन की तरफ मुह किये थे और में एवं आशुतोष गलेरी के दूसरे दरवाजे की तरफ खिसकने लगे जैसे ही ट्रेन थोड़ी धीमी हुई और उन लोगो का ध्यान हमारी तरफ से हटा, पहले मै ट्रेन का हंडल पकड़कर ट्रेन के चलने की दिशा में भागते हुए उतरा और उसके बाद आशुतोष ! तब तक बाकी लड़के भी समझ गए कि क्या हो रहा है वो भी हम लोगो के पीछे भाग निकले ! हम लोग ट्रेन के विपरीत दिशा में भाग रहे थे .. सबसे आगे में, उसके पीछे आशुतोष, तथा उसके पीछे 5 या 6 लड़के इन सबके पीछे 2 या 3  G R P के मोटे मोटे तोंद वाले सिपाही.....( सीटी बजाते हुए )...
मैंने भी पलटकर नहीं देखा कि कौन कितना दूर है बस भागता रहा, पूरा स्टेशन पार करने के बाद जंगल शुरू हो गया ! तब मैंने रुककर पलटकर देखा आशुतोष भी भागते हुए आ रहा था ( तब मैंने जाना कि स्लिम होना भी फायदेमंद होता होता है ) 
तब तक आशुतोष भी हाँफते हुए मेरे पास आ गया था ! हम दोनों लोग हँसते हँसते लोटपोट थे ! तब मैंने अपनी शर्ट बदली और कुछ देर बाद वापस स्टेशन चल दिए . चूँकि जनरल का टिकेट हमारे पास था इसलिए अगली ट्रेन तक हमें इंतजार करना था....  


खैर अगली गाड़ी से हम सही सलामत दिल्ली पहुँच गए और फिर रात में हरिद्वार की ट्रेन का भी पता कर लिया !
हरिद्वार की ट्रेन रात  में साडे बारह बजे थी  तब तक मुझे टाइम पास के लिए  "हुमन बिहाविअर " पर रिसर्च  करना था और आशुतोष को लम्बे पड़कर सोना था ! मै आशुतोष के पास सामान छोड़कर निकल गया "पब्लिक लैब "में...  


चारो तरफ सर ही सर दीख रहे थे .. छोटे बच्चे रो रहे थे, कुछ लड़के एक तरफ झुण्ड बनाकर हसी मजाक  कर रहे थे, तीन चार महिलाएं अपनी कचर कचर लगाये जा रहे थी .कुछ लोग बड़ी मुस्तैदी से अपने सामान की रच्छा कर रहे थे, एक लड़की अपने बड़े से बैग के ऊपर बैठी हुई थी वह इधर उधर देखकर बार बार अपने पर्स से एक छोटा सा शीशा निकालकर अपने होंठो कि  लिपस्टिक ठीक करती और वापस रख देती . जब उसने मुझे देखा कि  मै उसे देख रहा हूँ तो वह मेरी तरफ पीठ करके बैठ गई .   वहीँ झुण्ड में एक गन्दा सा आदमी बारी बारी सबके सामान को घूम घूम कर घुर कर देख रहा था ! मुझे लगा कि  ये तो शकल से ही चोर लग रहा है  !

तब तक टिकेट विंडो पर भीड़ कम हुई तो मै भी टिकेट के लिए लाइन में लग गया , जल्दी ही टिकेट भी मिल गया तो मै वापस आशुतोष के पास लौट गया ! महाराज अभी भी लम्बी तानकर  सो रहे थे  ! मैंने उठाया तो उठते ही वोले ट्रेन आ गयी ? ....
मैंने कहा ट्रेन नहीं आई अब मुझे आराम करना है ट्रेन आ जाये तो मुझे बताना .. इतना कहकर मै उनकी जगह पर लेट गया और आँख बंद कर ली ! ...

मुझे भी थका होने के कारण ज्यादा ही गहरी नींद आ गयी , जब आशुतोष ने मुझे उठाया तो मैंने भी सीधे बैग उठाकर बोला कहाँ है ट्रेन ? आशुतोष के इशारा  पर दोनों ट्रेन की दिशा में चल दिए !
चलो यहाँ पर सीट मिल गयी .. और दोनों आराम से बैठ गए ..थोड़ी देर बाद ट्रेन भी धीरे धीरे रेंगने लगी ....
आशुतोष तो 15-20 मिनट के बाद ही झपकी लेने लगा और मै अपने विचारों में खोने लगा ,मै सोच रहा था कि  अनजान सफ़र,   अनजाना  हम राही,   क्योंकि  मै इससे पहले "नीलकंठ महादेव " पर नहीं गया था ! और मै   एक अपरिचित आदमी के साथ था !
पर मेरी सिक्स्थ सेन्स और फेस डिटेक्शन पॉवर के अनुसार मै  एक सही व्यक्ति के साथ था ... 


यही सोचते सोचते मै कब सो गया मुझे खुद पता नहीं ...

अचानक मेरी आँख खुली जब मुझे अपने कम्पार्टमेंट में दो अजीब सी आकृतियां दिखाई दी ! यहाँ मैंने आपकी और अपनी सुविधा के लिए एक चित्र लगा दिया है ताकि आपको समझने में दिक्कत न हो और मुझे ज्यादा लिखना न पड़े !
वे दोनों मुझे ही घुर घूर कर देख रहे थे , पहले तो मै  भी डर गया कि यह क्या है ?
फिर मैंने अपने आप पर संयम रखते हुए उनसे बोला ----
"बाबा जी सीता राम ",
"सीता राम बच्चा " उनमे से एक ने कहा और मेरे पास फर्श पर बैठ गया ..
मैंने मन ही मन बजरंग बलि का नाम लिया ओर कहा "प्रभु रक्छा "...
मैं फिर से झपकी लेने लगा था .....

कुछ समय बाद जब मेरी आँख खुली तब मैं अचानक चोंक गया दोनों महानुभाव गायव थे ! मैंने कहा की कहाँ गए अभी तो यही थे . बीच में ट्रेन भी कहीं नहीं रुकी फिर ये दोनों कहाँ गए ?????????


अगला भाग शीघ्र ही :----

आगे दोनों का प्रकट होना ;;      हरिद्वार का गंगा स्नान ,               ऋषिकेश के लिए प्रस्थान ,        15 किलोमीटर पहाड़  की पैदल यात्रा 






2 comments:

  1. बीबी से प्रताड़ित सन्यास लेने के लिए बेघर व्यक्ति पर विश्वास किया जा सकता है। आगे चल कर कहीं आशुतोष "तुलसी बाबा" न बन जाए। वैसे भी गृहस्थी के सन्यास का जागरण महिलाओं की प्रेरणा से होता है।:)

    बढिया घुमक्कड़ी चल रही है आनंद आ गया। मुझे एक घुमक्कड़ और मिल गया। हा हा हा आनंदम आनंदम

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