Tuesday 3 July 2012

(1) मनमौजी घुमक्कड़

प्रिय  दोस्तों  !
यह  मेरा  पहला ब्लॉग  है तो  मैंने सोचा  कि किसी तीर्थ यात्रा का विवरण ही सुनाओ !
एक  बार मन थोडा सा विरक्त था तो वाराणसी भ्रमण पर निकल आया ! वहां पर सभी घाटों पर बारी बारी से स्नान किया सोचा मन थोडा शांत होगा पर कम्बक्त शांति नहीं मिल रही थी ! सोच रहा था की जिन्दगी अजीब चीज है। कभी हँसाती है तो कभी रुलाती है मन में तरह तरह के दार्शनिक विचार उठ रहे थे , मैं एक घाट पर बैठा गंगा जी के जल को ध्यान से देख रहा था कभी जल मेरे पास आता कभी मुझसे दूर चला जाता , मै सोचता    रहा शायद जिन्दगी इसी  का नाम है . कभी जिन्दगी में ख़ुशी आती है कभी गम पर हम लोगों को अपना प्रवाह नहीं रुकने देना है "  चलते रहो -चलते रहो " यही जिन्दगी का नियम है . मुझको भी महात्मा बुद्ध  की तरह "परम ज्ञान " कि प्राप्ति हो गयी थी !



तो सोचा ज्ञान प्राप्त करने के लिए अभी बहुत उम्र पड़ी है , चलो थोडा मोज मस्ती कि जाये . में निर्जन घाट से उठा और थोड़ी भीड़- भाड़ वाले घाट पर आ गया. वहां पर हर कोई अपने अपने काम में व्यस्त था किसी को अपने पाप धोने थे, किसी को पूर्वजो का श्राद्ध करना था ,  कोई पिकनिक मनाने आया था . मै घाट के एक कोने में बैठकर प्रभु की लीला को  देख रहा था, कई साधू संत अपने लम्बे लम्बे केश फैला कर सुखा रहे थे, कई पण्डे  अपनी अपनी लीला दिखाने में लगे थे ,
" ए भैया तनिक बात सुनी इधर हम तुमनी को 51 रु में गंगा जी की पूजा करवाई दिहन "
"आवां आवां भैया इहाँ आवां "
मै भी सारा द्रश्य देखकर चुपचाप मुस्करा रहा था .

कुछ लोग समझदार थे एक सदस्य को सामान रक्छा का भार  देकर बाकि लोग स्नान करने चले गए थे
 .
तभी मेरी नजर एक अधेड़ उम्र के व्यक्ति पर पड़ी वह चुपचाप घाट के एक किनारे पर बैठकर किसी सोच विचार में डूबा हुआ था . खिचड़ी पके हुआ बाल , चेहरे पर चिंता कि लकीरें , न उसे दीन से मतलब ना दुनिया  से उसको देखकर कोई भी सोच सकता था की यह किसी गहरी परेशानी में है .
मैंने सोचा कि इससे बात कि  जाये . वैसे भी मै अकेला था और मेरा कोई मित्र मेरे साथ नहीं था . मै भी अपनी जगह से उठकर उसके पास वाली जगह पर बैठ गया . कुछ देर तक दोनों यूं ही बैठे गंगा जी कि धारा को देखते रहे . उसने मुझे एक नजर देखा फिर चेहरा घुमा लिया .
मुझे ध्यान है बातचीत मैंने ही प्रारंभ की थी . थोड़ी देर परिचय के बाद कुछ और धार्मिक बातें होती रही . एक पण्डे कि हरकत को देखकर जब मैंने उसकी तरफ इशारा किया तब मैंने उसके चेहरे पर पहली बार मुस्कराहट देखी . लगभग एक या दो घंटे में हम लोग काफी घुल मिल गए . तब उसने अपनी उदासी कि वजह बताई कि  उसकी पत्नी से उसकी लड़ाई हुई है एवं उसका मन अब घर में नहीं लगता तथा अब वह सन्यासी बनना चाहता है .
यह सुनते ही मैंने मन ही मन में कहा " हे प्रभु तेरी भी लीला अपरम्पार ".
"ठीक है" मैंने उससे कहा चलो जब तक सन्यासी नहीं बनते तब तक इस भोलेनाथ की नगरी की सैर की जाये . मेरे इतना कहते ही दोनों एक साथ हस पड़े . फिर दोनों की राह कुछ दिन के लिए एक हो गयी .
शाम हो चली थी, वाराणसी में न मेरा कोई ठिकाना था न ही  उसका ( हाँ बातचीत में उसने अपना नाम "आशुतोष " बताया था ). शाम के छे बजे अँधेरा होना शुरू हो गया था . शायद साडे आठ या नो बजे तक हमको एक सस्ती धर्मशाला में रुकने की जगह मिल गयी . अपना थोडा बहुत सामान जो हमारे पास था, मेरे पास एक बैग जिसमे एक अंगोछा और एक जोड़ी कपडे थे एवं उसके पास केवल एक पोलिथीन में तहमद था . खैर वो तो सन्यासी ही बनने आया था. अपना सामान धर्मशाला में छोड़कर हम लोग वापस एक घाट पर आ गए . वहां पर एक लंगड़े साधू को देखा जो अपने शरीर पर मुल्तानी मिटटी की मालिश कर रहा था. जब उसने अपना काम  पूरा कर लिया तो थैले की जेब से एक शीशी निकाली और इधर उधर देखकर वो शीशी को पी गया . मैंने  उसकी तरफ  से ध्यान हटाकर गंगा जी की सुन्दरता देखनी प्रारंभ की . ठंडी ठंडी हवा चल रही थी ,चारो तरफ पत्ते के दोनों में छोटे छोटे दिए जल रहे थे , अगरबती , धूप आदि की महक बातावरण में घुली हुई थी . वह नजारा भुलाने से भी नहीं भूलता .
थोड़ी देर तक हम दोनों अपने आप में खोये रहे . जब थोड़ी ठण्ड सी  लगने लगी तो हमने सोचा की अब वापस चलना चाहिए . रस्ते में वाही लंगड़ा साधू आश्चर्यजनक रुप से तेज तेज चिल्लाकर भीख मांग रहा था . भीड़ ज्यादा होने की वजह से हमें उसके बिलकुल पास से निकलकर जाना पड़ा . उसके पास से अगरबत्ती और धुप की महक के आलावा एक ऐसी महक भी आ रही थी जो मेरे लिए सर्वथा परिचित थी , वह "देशी दारू " की महक थी .

खैर एक सस्ते से होटल पर हम दोनों ने रूककर पचास रुपये में भर पेट भोजन किया और धरमशाला कि ओर चल दिए . रस्ते में मैंने आशुतोष से  पूछा कि कल का क्या प्रोग्राम है तो वो बोला की रूम पर पहुंचकर बताएँगे ! धरमशाला में हम दोनों को बिछाने के लिए सिर्फ एक एक दरी दी गयी थी  ! बहुत सारे लोग सामूहिक रूप से साथ साथ एक हाल  में सो रहे थे ! 
वहां पहुँचने पर उसने मुझसे कहा कि मेरे पास पैसे बहुत कम हैं इसलिए सारा कुछ तुम्हारे ऊपर है कि तुम कहाँ घूमना चाहते हो ?
"ठीक है " मैंने कहा और अगले दिन का प्रोग्राम बनाने लगा .......

सुबह लगभग पांच बजे मेरी आंख खुली ! कुछ धार्मिक लोग ब्रम्ह मुहुर्त में ही गंगा स्नान के लिए चले गए थे , और कुछ तैयार हो रहे थे ! मैंने भी आशुतोष को आवाज लगायी वो भी चोंक कर उठ बैठा ! इसके बाद दोनों लोगों ने दैनिक क्रिया से निवृत होकर गंगा जी के लिए प्रस्थान कर दिया !
रस्ते में ठंडी शुद्ध हवा एवं वातावरण में मंदिर की घंटिया तथा अगरबती , चन्दन, धुप की महक ..
गंगा जी के किनारे पहुँच कर नमन किया फिर हरि का नाम लेकर गंगा जी में कूद पड़े . गंगा मय्या ने हमको ऐसे पकड़ा जैसे कोई मां अपने बच्चे को पकडती है . करीब आधा घंटा नहाने के बाद जब ठण्ड लगी तो वापस किनारे पर आये और कपडे बदलकर गंगा जी की मानसिक पूजा की !
घाट पर वापस आकर देखा तो साधू संत पूजा अर्चना में व्यस्त दिखे . कुछ खास नहीं बस कल शाम  वाला ही वातावरण था ! वापस आते समय में अचानक चोंक गया सीडियों पर एक पेड़ के नीचे वहीँ कल  रात वाला लंगड़ा साधू  सो रहा था . उसके सारे कपडे अस्त व्यस्त थे . उसके पास ही उसके गंदे से कपडे , एक डंडा कुछ बर्तन एवं पास में ही उसकी दारू की शीशी पड़ी थी !

आशुतोष ने मुझसे कहा की ऐसे ही साधुओं की वजह से हिन्दू धरम बदनाम होता है। फिर हम आगे चल दिए ---बाहर बाजार में---
एक ठेले पर इडली साम्भर देखकर मै चोंका  तो दुकानदार ने बताया की यहाँ पर साउथ वाले लोग भी अच्छी संख्या में  आते है ! इसलिए इडली साम्भर एक साथ बिक जाता है'--
 हमने इडली साम्भर का नाश्ता किया और आवश्यक कैलोरी लेने के बाद मंदिरों  के दर्शन के लिए कूच कर दिया .
हम दोनों अब तक बहुत अच्छे मित्र बन चुके थे . कई छोटे छोटे मंदिर और बाबा काल भैरव मंदिर का पैदल ही घुमने के बाद थक गए और फिर रूककर थोडा चाय बिस्कुट  लेने के बाद आराम किया !
आगे चलते चलते कबीर जी की जन्मस्थली  पहुंचे . यहाँ गंगा जी के किनारे पर कबीर के चेलों द्वारा एक बिशाल मंदिर बनबाया गया है जिसे देखने बहुत दूर दूर से लोग यहाँ आते है !
                                                                                                                       
यहाँ घाट पर भीड़ नहीं थी !

हम लोगों ने अपना सामान यहाँ रखकर गंगा जी में हाथ मुह धोया एवं घाट के किनारे पर ही खाने की  व्यवस्था  बन गयी फिर तो एक पेड़ के नीचे पोलिथीन बिछाकर पैर फैलाकर लेट गए ! लेटते  समय मैंने एक बार इधर उधर का निरीक्षण किया तो बंदरों का झुण्ड दूसरे पेड़ पर दिख गया मेने सोचा की एक दो कपडा है ! वो भी ये उठा ले जायेंगे तो बहुत परेशानी होगी मैंने सारे कपड़ों को बैग में रखकर तकिया बनायीं और लेट गया  .लेटते  ही पता नहीं कब नींद आ गयी !......

अचानक आशुतोष ने मुझे पकड़कर हिलाया , कि  उठो उठो बहुत समय हो गया मैंने आंख मिचमिचा कर खोली तो शाम होने आई थी /  
धुप में लेटने से गर्मी लगने लगी थी , हम लोग फिर से कपडे संभाल कर गंगाजी में कूद पड़े .
थोड़ी देर नहाने के बाद जल्दी जल्दी कपडे पहने और  अपनी धरमशाला की ओर चल दिए  .. 


रात का खाना खाने के बाद आशुतोष ने पुछा कि कल का क्या प्रोग्राम है ? मेने कहा की कल मुझे डेल्ही के लिए निकलना है ..तुम बताओ तुम अब क्या करोगे ?
आशुतोष ने कहा कि "यहीं कोई आश्रम देखूँगा और आश्रम में ही रूककर सेवा करूंगा ".
तब मेने उसकी आँखों में बेचैनी देखी , मैंने कहा कि  अगर कहीं घूमने की इच्छा हो तो बताओ ?
वो वोला नहीं यार मेरे पास पैसे नहीं है . मैंने कहा की जगह बोलो कहाँ चलना चाहते हो ?

उसने कहा की एक बार नीलकंठ महादेव जाना  चाहता हूँ ..... पर छोड़ो फिर कभी जाऊँगा ! वह मुझसे बोला कि तुम अब कब मिलोगे ?
मैंने कहा नीलकंठ महादेव जाने के लिए तैयार हो जाओ ......  कल हम तुम साथ में चलेंगे ..
वो मुझे देखता रहा जैसे कुछ कहना चाहता हो और में सिगरेट पीने धरमशाला के बाहर चला गया ...

आगे बिना टिकेट ट्रेन यात्रा , दो भटके मुसाफिर से मिलना , भालू  का आक्रमण , 15 फीट पहाड़ी से कूदना 


अगला भाग जल्दी ही.......
  क्रमश:








6 comments:

  1. लक्षण तो पुरे घुमक्कड़ के ही हैं। इस पोस्ट को देखने बाद मुझे बनारस में बिताए दिन याद आ गए। कुछ फ़ोटो और होते तो पोस्ट में चार चाँद लग जाते। लेखन निरंतर जारी रखे। मैं आता रहुंगा।

    ReplyDelete
  2. Dhanyavad ! Lalitji..

    Aap to Dhurandhar Blogger hain ...

    Pahla comment aap aaya ...

    Romanchit Hoon..

    ReplyDelete
  3. hindi me aapne kud hi likha hai??

    ReplyDelete
  4. Nice Post , मै 1989 Air force SSB के लिय बनारस गया था . तो बस सारा की सारा Picture याद आया . अब पता नही बनारस क्या हाल है. लेकीन बहुत अच्छा शहर है . खास कर के BHU .

    ReplyDelete
  5. Nice Post , मै 1989 Air force SSB के लिय बनारस गया था . तो बस सारा की सारा Picture याद आया . अब पता नही बनारस क्या हाल है. लेकीन बहुत अच्छा शहर है . खास कर के BHU .

    ReplyDelete